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२६२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
जीवन भी अनित्य है। जब अनित्यता का यह अनुचिंतन सामने रहता है, बार-बार चेतना में उभरता है तब अहंकार के प्रश्न समाप्त हो जाते हैं। जिस व्यक्ति को अनित्यता का अनुभव नहीं होता उसमें क्रोध आने का बहुत अवकाश रहता है। जिसकी चेतना में यह बात जम गई कि संयोग अनित्य है, पदार्थ नश्वर है, तब पदार्थ के चले जाने पर भी वह दुःखी नहीं होगा।
हमारे व्यावहारिक जीवन में भी अनित्य अनुप्रेक्षा का बहुत बड़ा महत्त्व है। जिस व्यक्ति के चित्त में यह संस्कार पुष्ट बन जाता है कि सब पदार्थ अनित्य हैं, फिर उस व्यक्ति के मन से विवाद बढ़ाने वाली बातें समाप्त हो जाती हैं। वह घटना को जान लेता है, भोगता नहीं। ध्यान करने वाले में और ध्यान नहीं करने वाले में यही अन्तर है। ध्यान करने वाला व्यक्ति घटना को जानता है, भोगता नहीं। ध्यान नहीं करने वाला व्यक्ति घटना को जानता नहीं, भोगता है। घटना को जानने वाला व्यवहार को अमृतमय बना देता है, मधुर बना देता है। घटना को भोगने वाला स्वयं दुःख पाता है और सारे वातावरण में दुःख के परमाणुओं को बिखेर देता है । वह दुःख उसी तक सीमित नहीं रहता, विस्तृत हो जाता है।
पति-पत्नी लड़ रहे थे। पड़ोसी आया। पूछा-क्या तुम सदा से लड़ते रहे हो? पति बोला-यह हमारे विवाह का तीसरा वर्ष है। पहले वर्ष मैं कुछ कहता, यह सुन लेती। दूसरे वर्ष यह कुछ कहती और मैं सुन लेता। इस तीसरे वर्ष में हम दोनों बोलते हैं और पड़ोसी सुनते हैं। तीसरा वर्ष उनके लिए दुःख बिखेरने का वर्ष बन गया। अशरण अनुप्रेक्षा
दूसरा सूत्र है-अशरण अनुप्रेक्षा। ध्यान साधक बहुत जागरूक रहता है। वह भ्रान्तियों को तोड़ता रहता है। यह एक बहुत बड़ी भ्रान्ति है कि आदमी हर एक को शरण मान लेता है। व्यवहार में ऐसा मानना पड़ता है, पर यह अंतिम सचाई नहीं है। हर एक चीज त्राण नहीं होती। हमारा यह विवेक स्पष्ट होना चाहिए कि हम व्यवहार को अन्तिम सचाई न मानें। व्यवहार व्यवहार होता है और यथार्थ यथार्थ होता है। व्यवहार की सचाई व्यवहार की सचाई होती है और वास्तविका की सचाई वास्तविकता की सचाई होती है। व्यवहार की सचाई इतनी-सी है कि जब तक दोनों का स्वार्थ जुड़ा रहता है, तब तक एक-दूसरे के लिए त्राण या शरण बने रहते हैं। जहां स्वार्थ को धक्का लगा कि त्राण समाप्त हो जाता है, शरण समाप्त हो जाता है, फिर वह पछतावे के शब्दों में कहता है-अरे, मैंने इसके पालन-पोषण के लिए कितना किया, आज यह मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है? उस व्यवहार के कारण कोई दुःखी नहीं होता, दुःखी होता है नियम की विस्मृति के कारण। व्यक्ति जब व्यवहार
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