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२६८ अप्पाणं सरणं गच्छामि
गुण तीन माने गए हैं-सत्त्व, रजस् और तमस् । इन तीनों गुणों के द्वारा मनुष्य पर विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं होती हैं। इन तीनों का रंगीन बिन्दुओं के आधार पर पता लगाया जा सकता है।
यह सूक्ष्म शरीर की संक्षिप्त चर्चा है। इनको सुनकर यह अभीप्सा पैदा होती है कि कभी-कभी स्थूल शरीर से परे भी जाना चाहिए। सूक्ष्म-शरीर का ज्ञान हमें नहीं है। हमारी अंतिम सीमा स्थूल शरीर है। हमारी सारी प्रवृत्तियां इसी की परिधि में होती हैं। इससे परे आदमी सोचता भी नहीं। सारी घटनाएं इसके इर्द-गिर्द हो रही हैं। किन्तु प्रेक्षा-ध्यान का अभ्यास करने वाला व्यक्ति सीमा को पार करना चाहेगा। जब वह सीमा को पार करेगा तब उसे पता चलेगा कि कब श्वेत रंग दिखाई देता है। कहां कब लाल रंग और चमकीला नीला रंग दिखाई देता है। किस प्रकार शान्ति, आनन्द और प्रसन्नता घटित होती है। अपने आप मन में एक जिज्ञासा जागती है-रंग क्यों आता है, यह क्या
__ रंगों का दीखना शुभ लक्षण है। इससे यह प्रतीत होता है कि मन स्थिर हो रहा है, लेश्या शुद्ध हो रही है। यह ध्यान की कसौटी है। जैसे-जैसे लेश्या शुद्ध होती है, वैसे-वैसे आभामंडल निर्मल और पवित्र होता है। जैसे-जैसे आभामंडल निर्मल होता है, वैसे-वैसे व्यक्ति का चरित्र शुद्ध होता चला जाता है। चरित्र-परिवर्तन का मूल आधार है लेश्या का परिवर्तन। चरित्र-परिवर्तन का मूल आधार है आभामंडल का परिवर्तन। आभामंडल जितना दूषित होता है, चरित्र भी उतना ही दूषित होता है। आभामंडल जितना शुद्ध होता है, चरित्र भी उतना ही शुद्ध होता है। आभामंडल का विश्लेषण करने वाला व्यक्ति चरित्र का विश्लेषण कर सकता है। वह व्यक्ति-व्यक्ति के चरित्र को जान सकता है।
ध्यान की दीक्षा देने वाला गुरु शिष्य के आभामंडल को देखकर उसके समूचे चरित्र को पढ़ लेता है और जान जाता है कि यह कैसा व्यक्ति है? इसकी भावधारा कैसी है? एस्ट्रलप्रोजेक्शन और समुद्घात
एक हब्शी महिला है। उसका नाम है-लिलियन। वह अतीन्द्रिय प्रयोगों में दक्ष है। उससे पूछा गया-तुम अतीन्द्रिय घटनाएं कैसे बतलाती हो? उसने कहा, 'मैं एस्ट्रलप्रोजेक्शन के द्वारा उन घटनाओं को जान जाती हूं। प्रत्येक प्राणी में प्राणधारा होती है। उसे एस्ट्रल बॉडी भी कहा जाता है। एस्ट्रलप्रोजेक्शन के द्वारा मैं प्राण-शरीर से बाहर निकलकर, जहां घटना घटित होती है, वहां जाती हूं और सारी बातें जानकर दूसरों को बता देती हूं।'
विज्ञान द्वारा सम्मत यह एस्ट्रलप्रोजेक्शन की प्रक्रिया जैन परंपरा की समुद्घात प्रक्रिया है। समुद्घात का यही तात्पर्य है कि जब विशिष्ट घटना घटित
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