Book Title: Appanam Saranam Gacchhami
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 302
________________ समस्या के मूल की खोज २६१ कि सोते हैं तब शरीर ढीला लगता है, अस्वस्थ लगता है, पर उठते हैं तब उसमें ताजगी आ जाती है और बिलकुल स्वस्थ लगता है। सुबह स्वस्थ, शाम को अस्वस्थ, शाम को अस्वस्थ और सुबह स्वस्थ । ऐसा क्यों? यह इसलिए होता है कि या तो शरीर के विद्युत् का सन्तुलन बिगड़ जाता है या शरीर के रसायन बदल जाते हैं। जब-जब ये रसायन बदलते हैं, जब-जब विद्युत् की धारा का संतुलन बिगड़ता है, तब-तब शरीर में परिवर्तन आता रहता है। एक आदमी को २४ घंटे में एक जैसा नहीं पाया जा सकता-न मानसिक दृष्टि से और न शारीरिक दृष्टि से। बड़ा गिरगिट है आदमी आदमी सूर्योदय के साथ अपना दिन प्रारम्भ करता है और सूर्यास्त के साथ उसे पूरा करता है। वह सूर्यास्त के साथ रात्रि का प्रारम्भ करता है और सूर्योदय के साथ उसे पूरा करता है। सूर्य की साक्षी से वह दिन बिताता है और सूर्य के अभाव में रात्रि बिताता है। कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि वह इस पूरे समय में एक-सा रहा हो। यदि कोई दावा करता है तो वह झूठा होगा। इस अवधि में मानसिक-तन्त्र और शारीरिक-तन्त्र में उतार-चढ़ाव आते हैं। मन और तन एक-सा नहीं रहता। कितना बदलता है। चेतन जितना बदलता है, उतना जड़ नहीं बदलता। जड़ में भी परिवर्तन आता है। सूक्ष्म जगत् में सब कुछ बदलता है, किन्तु स्थूल जगत् में आदमी का तन और मन जितना बदलता है उतना जड़ पदार्थ नहीं बदलता। आदमी इतने रंग बदलता है कि शायद गिरगिट भी इतने रंग नहीं बदलता। गिरगिट के पास उतने रंग हैं ही नहीं। आदमी बहुत बड़ा गिरगिट है। एक घंटे में कितने मनोभाव बदल जाते हैं। कभी उसमें राग का भाव जागता है, कभी द्वेष का। कभी वह क्रूर बनता है तो कभी करुणा से भर जाता है। कभी उसमें हास्य का भाव जागता है तो कभी रुदन का भाव जागता है। इन सब भावों को यदि फिल्माया जाए तो बहुत बड़ी फिल्म हो सकती है। इसके लिए हाई फ्रीक्वेन्सी का कैमरा आवश्यक होगा। एक घंटे में हजारों-लाखों भाव बदलते हैं। एक-एक भाव के अनेक पोज लेने होंगे, तब मन का एक चित्र सामने आएगा। इतनी है हमारी गतिशीलता और परिवर्तनशीलता। यदि हम इन सारे रूपों को जान सकें तो समस्या समाधान प्राप्त हो सकता है। समस्या का समाधान खोजने के लिए सारे दृष्टिकोणों को सापेक्ष करना होगा। जिन-जिन पर, जिन-जिन लोगों ने दायित्व डाला है, उन सबको सापेक्ष कर, एक पूरा चित्र बनाकर देखना होगा। समस्या के मूल में परिस्थिति भी एक सचाई है, शरीर की विद्युत् और रसायन भी एक सचाई है, मानसिक परिवर्तन और तनाव भी एक सचाई है, आजीविका का प्रश्न भी एक सचाई है, संस्कार और कर्म के विपाक भी एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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