________________
चित्त-शुद्धि और लेश्या-ध्यान २७३
ने तेजोलेश्या का प्रयोग नहीं किया, ध्यान नहीं किया, वह व्यक्ति इस स्थूल शरीर से परे भी कोई आनन्द होता है, इन विषयों से परे भी कोई सुखानुभूति है, नहीं समझ पाता, कल्पना भी नहीं कर पाता। आंसू क्यों?
जैन विश्व भारती के प्रांगण में प्रेक्षा-ध्यान का शिविर था। वह सम्पन्न हुआ। अन्तिम दिन पति-पत्नी मेरे पास आए। वे रोने लगे। मैंने पूछा-क्यों? उन्होंने कहा-जाना पड़ रहा है, पर जाने को जी नहीं करता क्योंकि जिस सुख का अनुभव यहां हुआ, वह जीवन में कभी नहीं हुआ था। हमने दर्शन-केन्द्र पर बाल-सूर्य के लाल रंग का ध्यान किया। ऐसा तेज प्रकाश जागा कि आज तक हमने वैसा रंग नहीं देखा। उससे जो आनन्दानुभूति हुई वह अनिर्वचनीय है। आज जा रहे हैं, बड़ा दुःख हो रहा है। इसीलिए आंखों में ये आंसू आ गए। सुख के निमित्त : विद्युत् प्रकंपन
जब तक वे प्रयोग से नहीं गुजरे थे, तब तक उन्हें यह ज्ञात ही नहीं था कि ऐसा अनिर्वचनीय सुख भी हो सकता है। आश्चर्य होगा, प्रश्न भी होगा कि न कुछ खाया, न सूंघा, न सुना, न देखा और न स्पर्श किया। फिर कैसा सुख? कहां से मिला? बहुत बार आदमी भ्रान्ति में उलझ जाता है। क्या खाने से, सुनने और सूंघने से, स्पर्श करने और देखने से सुख मिलता है? इस भ्रान्ति को तोड़ें। पदार्थों में सुख नहीं है। हमारे भीतर एक विद्युत्-धारा है। वह सुख का निमित्त बनती है। वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि विद्युत् के प्रकंपनों के बिना कोई सुख का संवेदन नहीं हो सकता। जो सुख इन्द्रिय-विषयों के उपभोग से उपलब्ध किया जाता है, वही सुख केवल विद्युत् के प्रकंपन पैदा करके भी किया जा सकता है। कान के बिन्दु पर या स्वाद के बिन्दु पर इलेक्ट्रोड लगाकर प्रकंपन पैदा किए जाएं, तो पदार्थ के बिना भी उनके उपभोग की-सी सुख संवेदना का अनुभव होता है। वस्तु के संयोग से जो प्रतिक्रियाएं पैदा होती हैं, वे प्रतिक्रियाएं वस्तु के बिना भी विद्युत् के प्रकंपनों से पैदा की जा सकती हैं। इसलिए यह तथ्य प्रमाणित हो गया कि सुख का संवेदन विद्युत् प्रकंपन-सापेक्ष है। __ जब तेजोलेश्या जागती है तब विद्युत् के प्रकंपन बहुत बढ़ जाते हैं, तीव्रतम हो जाते हैं। प्रेक्षा-ध्यान का अभ्यास करने वाले को इलेक्ट्रोड लगाने की जरूरत नहीं है। जब वह तेजोलेश्या का ध्यान करता है, बाल-सूर्य की रश्मियां साकार होती हैं, विद्युत् के प्रकंपन तीव्र होते हैं तब इतने सुख का अनुभव होता है कि व्यक्ति उसे छोड़ना नहीं चाहता। इन्द्रिय विषयों को भोगने के बाद कठिनाइयां भी पैदा होती हैं, कभी शक्तिहीनता का अनुभव होता है और कभी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org