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अपनी खोज १६५
प्रियता और अप्रियता का आरोप कर लेते हैं। एक आदमी को गाली देने में इतना आनन्द आता है, इतनी प्रिय लगती है कि दिन में दस-बीस बार गाली न दे तो शायद भोजन ही हजम नहीं हो। दिन में दो-चार बार लड़ाई न करे, दिन में दो-चार बार गाली-गलौज न करे तो उसे लगता है कि आज किस आदमी का मुंह देखा कि सारा दिन फालतू चला गया।
पति और पत्नी दोनों में लड़ाई हो रही थी। एक-दूसरे को गालियां दे रहे थे। एक पड़ोसी पहुंच गया अचानक, उसने सब कुछ देखा। पड़ोसी ने पूछा-'क्यों लड़ रहे हैं?' पति ने कहा-'क्या करें, बहुत दिन हो गये साथ रहते-रहते। जीवन में नीरसता आ गई, रूखापन आ गया, सुस्ती-सी आ गई।' चुस्ती लानी है तो एक बार लड़ लें, जी-भर लड़ लें तो फिर नया जीवन शुरू होगा, नई ताजगी आ जाएगी।
न जाने आदमी ने प्रियता और अप्रियता के कैसे मानदण्ड बना रखे हैं? किस प्रकार एक बात को प्रिय मान लेता है और दूसरी को अप्रिय मान लेता है। जब तक यह प्रियता और अप्रियता का सवाल बना रहेगा और यह मिथ्या दृष्टिकोण बना रहेगा, तब तक हमारा आनन्द निर्बाध नहीं हो सकेगा। इन बाधाओं को नहीं रोका जा सकता। एक बात, एक वस्तु, एक व्यक्ति और एक घटना सामने आयी, मन में प्रियता जाग गयी, सुख का भाव जागा और दूसरी बात, दूसरी वस्तु, दूसरा व्यक्ति और दूसरी घटना सामने आयी और मन में अप्रियता का भाव जाग गया। यह सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख का चक्र जब तक चलता रहेगा, तब तक निर्बाध सुख नहीं होगा। निर्बाध सुख के लिए दृष्टि को सम्यक् करना भी बहुत जरूरी है। अस्खलित शक्ति की साधना
हमारी शक्ति स्खलित क्यों होती है? शक्ति में बाधा क्यों आती है? बहुत मूल्यवान् प्रश्न है। हमारी सारी जीवन की पद्धति को दिशा देने वाला और बदलने वाला प्रश्न है कि शक्ति में बाधा क्यों आती है? शक्ति में इसलिए अवरोध
और रुकावट आती है, हमारी शक्ति इसलिए स्खलित हो जाती है कि हम दूसरों के सुखों को कुचलने में रस लेते हैं, दूसरों की शक्ति को क्षति पहुंचान में हमारा रस है। हर आदमी दूसरे की शक्ति को क्षति पहुंचाना चाहता है। हर व्यक्ति यह चाहता है कि दूसरा मुझसे बड़ा न बने और जहां भी बड़ा बनने लगता है उसके पंख काटने का प्रयत्न होता है, उसके पैर तोड़ने का प्रयत्न होता है
और उसे पीछे ढकेल दिया जाता है। मालिक कब चाहता है मुनीम उसके बराबर बन जाए या उससे आगे चला जाए। और की बात छोड़ दें, पिता भी नहीं चाहता कि बेटा उससे आगे चला जाए। पति कभी नहीं चाहता कि पत्नी उस पर हावी हो जाए।
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