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२०० अप्पाणं सरणं गच्छामि
और जहां प्रयोजन हो वहां पचास हजार भी दिया जा सकता है और एक लाख भी दिया जा सकता है।' मालवीयजी उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित रह
गए।
शक्ति का निरर्थक खर्च
यह बहुत बड़ा निदर्शन है, दर्शन है। आदमी व्यर्थ में ही शक्ति को बहुत खर्च करता है । शक्ति को जलाता रहता है। एक दियासलाई जलाई और एक लकड़ी जलाई । एक लकड़ी ही नहीं जलती, फिर लड़कियां ही जलती चली जाती है । हम अपनी शक्ति का कितना अपव्यय करते हैं, लाभ कुछ भी नहीं उठाते। जहां लाभ मिले, कोई फल मिले, शक्ति का व्यय हो तो बात समझ में आती है । शक्ति केवल रखने के लिए नहीं होती, केवल भंडार में पड़े रहने के लिए नहीं होती, शक्ति उपयोग के लिए होती है, किन्तु जहां शक्ति का उपयोग न हो और निकम्मा खर्च हो, वह बात एक पैसे की भी सहन नहीं हो सकती । कोई भी समझदार व्यक्ति इस बात को सहन नहीं करता कि व्यर्थ में शक्ति का एक कण भी उपयोग में लाया जाये। मैं भी जानता हूं और आप भी जानते हैं कि शक्ति का कितना निरर्थक व्यय होता है। काम करने में पांच प्रतिशत शक्ति का व्यय होता है तो पिचानवे प्रतिशत शक्ति का व्यय विकल्पों की कल्पना में होता है। काम करना है। पांच प्रतिशत शक्ति की जरूरत है, किन्तु इतने विकल्प आते हैं कि पिचानवे प्रतिशत शक्ति खर्च हो जाती है ।
जीवन की यात्रा चलाने के लिए जितनी शक्ति की जरूरत होती है, वह शक्ति प्रतिदिन पैदा की जा सकती है। प्रत्येक कोशिका के पास अपनी अश्वशक्ति है और प्रत्येक कोशिका अपनी जरूरत के अनुसार शक्ति पैदा कर लेती है, किन्तु जीवन-यात्रा के लिए ही हम शक्ति का व्यय नहीं करते, शक्ति का व्यय तो बिना जरूरत भी करते हैं। काम करना था एक मिनट का और चिन्तन शुरू किया, काम हो गया । किन्तु काम अब सिर पर सवार हो गया । विकल्प चलता रहता है, चलता रहता है, चलता ही रहता है, विस्मृत नहीं होता । याद आता रहता है। सताता रहता है ।
स्मृति का भार
दो भिक्षु जा रहे थे। रास्ते में नदी आ गई। नदी के तट पर खड़े थे। इतने में एक सुन्दर युवती आयी । उसने कहा- मैं भी पार जाना चाहती हूं। किन्तु चल नहीं सकती, डर लगता है। आप मुझे पार करा दें, कोई नौका दिखायी नहीं दे रही है । संन्यासी थे। करुणा आ गई। एक ने कहा- मेरे कंधे पर बैठ जाओ, तुम्हें पार करा देता हूं। उसे पार करा दिया। युवती चली गई। दोनों संन्यासी साथ चल रहे हैं। दूसरे ने कहा- यह अच्छा काम नहीं किया। स्त्री को अपने कंधे पर बिठाया, अच्छा काम नहीं किया । सुन लिया। फिर आगे
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