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चित्त-शुद्धि और अनुप्रेक्षा २५६
एक क्षण में समाप्त कर देते। सारे विरोधियों को भस्म कर देते, पर उन्होंने वैसा नहीं किया। जब भी दूसरे उनको सताते तो वे सोचते 'ये अज्ञानी हैं', हमें निमित्त बनाकर स्वयं बन्धन पैदा कर रहे हैं। अनुप्रेक्षा : आलम्बनों की जननी
अध्यात्म का एक सूत्र है-कोई व्यक्ति क्रोध करे, गाली दे, उसे सहन करो। सहन करना सामान्य बात नहीं है। इसके लिए पुष्ट आलम्बन चाहिए। किसी आलम्बन के आधार पर ही सहा जा सकता है। सामान्यतः गाली का उत्तर गाली से, क्रोध का उत्तर क्रोध से, उत्तेजना का उत्तर उत्तेजना से दिया जाता है। सामने कोई प्रतिक्रिया हो और दूसरा प्रतिक्रिया न करे, ऐसा सम्भव नहीं लगता, किन्तु अनुप्रेक्षा के आलम्बन के सहारे इन सब स्थितियों को सहा जा सकता है। तब कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। ये आलम्बन अनुप्रेक्षा से प्राप्त होते हैं। क्रोध आदि आवेशजन्य स्थितियों को सहने, मन को शान्त और सन्तुलित रखने के पांच पुष्ट आलम्बन हैं। १. भूल की खोज __कोई व्यक्ति क्रोध करता है, गाली देता है, उत्तेजित होता है तो जिस व्यक्ति को आलंबन प्राप्त है, वह सोचता है-अवश्य ही मेरी कोई-न-कोई त्रुटि हुई है। मुझे उस त्रुटि को खोजना चाहिए। मेरी त्रुटि के कारण ही यह उत्तेजित
और क्रोधित हुआ है। वह साधक अपनी भूल की खोज में लग जाता है। वह क्रोध का उत्तर क्रोध से नहीं देता। सामने वाला व्यक्ति भी शांत हो जाता है। २, मैं अज्ञानी नहीं
जब दूसरा कोई क्रोध करता है तब वह आलंबन-प्राप्त साधक सोचता है-यह अज्ञानी है, इसलिए क्रोध कर रहा है। इसे क्रोध के दुष्परिणाम ज्ञात नहीं हैं। मैं ज्ञानी हूं। मुझे क्रोध के दुष्परिणाम ज्ञात हैं। मैंने क्षमा का मूल्य समझा है। अज्ञानी आदमी को क्रोध करते देखकर यदि मैं भी क्रोध करूं तो मैं भी अज्ञानी बन जाऊंगा।
एक व्यक्ति अपने मित्र के घर गया। पूछा-आज इतने प्रसन्न कैसे लग रहे हो? उसने कहा-आज एक अजीब घटना घटी। मैं पड़ोसी के धर गया। उसने जाते ही मुझे कहा-तुम गधे हो। मित्र ने पूछा-तुमने प्रत्युत्तर में क्या कहा? उसने कहा-मैं मौन रहा। क्योंकि मैं भी गाली का उत्तर गाली से देता तो सचमुच मैं गधा बन जाता। उसने मुझे गधा कहा, इससे मैं गधा नहीं बना किन्तु मैं गाली देता तो अवश्य ही गधा बन जाता।
जिनमें सहन करने की शक्ति दुर्बल होती है, वे गुस्से के प्रति गुस्सा, उत्तेजना के प्रति उत्तेजना करने में रस लेते हैं। जिनमें यह चेतना जाग जाती है-अज्ञानी मनुष्य को देखकर अज्ञानी नहीं बनता है। क्रोध वह करता है जो अज्ञानी होता
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