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चित्त-समाधि के सूत्र (१) १५१
लोगों ने केवल चंचलता को बढ़ाने का अर्थ ही समझा है, उन लोगों ने सचमुच दुनिया को अशान्त और पागल बनाया है। आज मानसिक पागलपन बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहा है। कल ही मैंने पढ़ा, भारत के एक डॉक्टर का सर्वेक्षण जो दस वर्ष पहले हुआ था। डॉक्टर ने बताया कि जिस नगर में मानसिक पागलों की संख्या आठ सौ पचास थी, आज वहां चौदह हजार की संख्या हो गई। यह भारत की चर्चा कर रहा हूं। मैं उन देशों की चर्चा नहीं कर रहा हूं जहां चंचलता को बढ़ाने वाले साधन बहुत बढ़ गए हैं और चंचलता जहां विक्षिप्तता के बिन्दु पर पहुंच रही है, विक्षेप बढ़ रहा है, वहां की संख्या तो बहुत ज्यादा है। अभी भारत तो वहां की कल्पना ही नहीं कर सकता, क्योंकि भारत गरीब है। गरीब होना एक अभिशाप भी है, गरीब होने के कुछ लाभ भी हैं। हर वस्तु के दो पहलू होते हैं। एक बुरा परिणाम होता है तो साथ-साथ अच्छा परिणाम भी होता है। गरीबी का बुरा परिणाम यह है-गरीबी के कारण अनैतिकता बहुत बढ़ रही है। किन्तु साथ-साथ गरीबी के कारण पागलपन की मात्रा उतनी नहीं बढ़ रही है जितनी कि समृद्धि के बाद बढ़ती है, क्योंकि समृद्धि के बाद जो चंचलता बढ़ती है, अतृप्ति बढ़ती है, फिर वह अतृप्ति पदार्थ से नहीं मिटती। उसे मिटाने के लिए कोई और बात चाहिए, समाधि चाहिए और समाधि का सूत्र उपलब्ध नहीं होता है तो फिर पागलपन का दरवाजा इतना चौड़ा हो जाता है कि फिर एक-दो आदमी के जाने का रास्ता नहीं होता, एक साथ हजारों-हजारों आदमी उस दरवाजे में जा सकते हैं, प्रवेश कर सकते हैं। बहुत चौड़ा रास्ता हो जाता है। हम कितना उपाय करें मानसिक शांति का, चित्त की समाधि का किन्तु जब तक वैराग्य का अभ्यास नहीं किया जायेगा, यह मानसिक अशान्ति की समस्या, चित्त असमाधि की समस्या सुलझ नहीं पायेगी। वैराग्य के बिना, पदार्थों के प्रति तीव्र आसक्ति को कम किये बिना, यह मानसिक अशान्ति की समस्या सुलझ नहीं सकती और चित्त शक्तिशाली बन नहीं सकता। मादक वस्तु से शांति-एक प्रश्न चिह्न
एक दूसरी धारा भी है मानसिक अशान्ति को मिटाने की। लोग सोचते हैं कि चित्त की अशान्ति को मिटाना है तो मादक वस्तुओ का उपयोग करें। न जाने कितने ट्रॅक्वेलाइजर्स चल रहे हैं, कितने ड्रग्स चल रहे हैं, कितनी औषधियां चल रही हैं, इस मानसिक अशान्ति को मिटाने के लिए, चित्त की समस्या को सुलझाने के लिए, किन्तु जितनी दवाइयां चल रही हैं, उतनी ही मानसिक अशान्ति बढ़ रही है। दवाई बनाने वालों को लाभ मिल रहा है, पैसे मिल रहे हैं और हमारे मानसिक चिकित्सकों को लाभ मिल रहा है कि वे जी रहे हैं।
एक व्यंग्य है। बहुत तीखा व्यंग्य है। बीमारी है तो डॉक्टर का परामर्श लो, इसलिए कि डॉक्टर जी सके। डॉक्टर जो दवा बताए वह दवा खरीदो इसलिए
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