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१०६ अप्पाणं सरणं गच्छामि
जाते हैं। संबंधों, संपर्कों और पदार्थों से होने वाले सारे दुःख अपने आप मिट जाते हैं । यही है - अनासक्त योग । अनासक्ति का अर्थ है-पदार्थ के साथ जुड़ी हुई चेतना का छूट जाना, उसके घनत्व का तनूकरण हो जाना, पदार्थ के साथ चेतना का संपर्क कम हो जाना, जब यह होता है तब समूचे जीवन में चेतना व्याप्त हो जाती है और आसक्ति की छाया दूर हो जाती है।
समाधि का पांचवां आधार है-अपने स्वभाव के जागरण के लिए उपायों का अवलम्बन ।
हमने सारे तथ्य जान लिये। किन्तु तथ्यों को जान लेने मात्र से कुछ नहीं होता । जब हमने स्वभाव को जगाने का प्रयत्न नहीं किया, उपायों का अवलम्बन नहीं लिया तो स्वभाव का जागरण नहीं होगा। हमारे में अनन्त आनन्द है, पर वह सोया पड़ा है । हमारे भीतर अनन्त शक्ति है, पर वह भी सुषुप्त है । हमारी अनन्त चेतना है, पर वह भी ढकी हुई है । आनन्द, शक्ति और चेतना ढकी पड़ी है। सघन आवरण है । इन सबका होना न होना समान है। आवृत आनन्द, शक्ति और चेतना का क्या उपयोग हो सकता है? पंखा तैयार है । सुन्दर है । सारी सामग्री है । पर बिजली नहीं है। इस स्थिति में पंखे का कोई उपयोग नहीं हो सकता । उसका होना न होना बराबर है। पंखा तब चलेगा जब बिजली का प्रवाह इसके साथ जुड़ेगा। शक्ति है पर वह तब काम आएगी जब प्राण-शक्ति का प्रवाह इसके साथ जुड़ेगा । आनन्द है, पर वह कार्यकर तब बनेगा जब चैतन्य का प्रवाह इसके साथ जुड़ेगा । शक्ति के साथ प्राण का प्रवाह जुड़े और आनन्द के स्रोतों के साथ चैतन्य का प्रवाह जुड़े, इसके लिए श्वास- प्रेक्षा, शरीर - प्रेक्षा और चैतन्य - प्रेक्षा का उपाय काम में लेना होता है ।
शरीर- प्रेक्षा से चेतना का साक्षात्कार
शरीर - प्रेक्षा की बात सुनकर आपको कुछ अटपटा-सा लगता था । आए थे ध्यान सीखने और हमें सिखाया जा रहा है शरीर को देखना । ललाट और भौंहों को देखो, आंख और कान को देखो। यह सब एक कांच में देखा जा सकता है । यह कार्य घर पर भी सम्पन्न हो सकता है, फिर इन शिविरों का प्रयोजन ही क्या है? दर्पण में शरीर को देखने वाले चमड़ी को देखते हैं, रंग-रूप को देखते हैं, आकृति को देखते हैं । बस, इतना ही देख पाते हैं। क्या कभी आपने चमड़ी के भीतर क्या है, देखा है ? क्या प्राण के प्रवाह से होने वाले प्रकंपनों और स्पन्दनों को पकड़ा है? नहीं, इन्हें जानने का कौन प्रयत्न करे ? प्राण के स्पन्दनों के नीचे जो चेतना की सक्रियता है, चेतना का प्रवाह है, आदमी कभी उस ओर ध्यान नहीं देता। हमारे शरीर का एक छोटा हिस्सा भी, ऑलपिन टिके उतना हिस्सा भी, प्राण से खाली नहीं है और जिस क्षण वह प्राणशून्य होता है, वह अवयव निर्जीव हो जाता है । शरीर प्रेक्षा इसलिए नहीं की जाती
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