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प्रेक्षा एक प्रयोग है ज्ञानी होने का ६३
सकती। दूध में चीनी मिला दी। आंख चीनी को देख नहीं सकती। इस प्रकार हमारे इन्द्रिय-ज्ञान की अनेक सीमाएं हैं। यदि हम सीमा को नहीं जानते तो बहुत बड़े असत्यों का पालन करते चले जाते हैं। आज के युग में सूक्ष्म अस्तित्व को नकारना बहुत बड़ा दुःसाहस होगा। हम सत्य के प्रति बहुत विनम्र रहें। हम यह कहना सीखें-'मैं इतना ही जानता हूं। इससे आगे मैं नहीं जानता।' यह सत्य का स्वीकार है। कभी-कभी कम जानने वाले व्यक्ति जानने का बहुत बड़ा दावा कर लेते हैं और जो कुछ अपने ज्ञान की सीमा से परे है, उन सबका अस्तित्व स्वीकार करने लग जाते हैं। ऐसे व्यक्ति कोरे बौद्धिक हो सकते हैं, ज्ञानी नहीं। ज्ञानी वह, जो ध्यानी है ___आचार्य भिक्षु सत्य के प्रति पूर्ण समर्पित थे। उन्होंने कहा-'कोई नया तत्त्व सामने आए और तुम्हारी बुद्धि में पैठ जाए, तुम उसको समझ लो तो उसे सहर्ष स्वीकार करो । यदि तुम्हारी समझ में न आए तो तुम बहुत विनम्रता के साथ कहो-'आपने अच्छा कहा, किन्तु मेरी बुद्धि स्थूल है, मैं उसे पकड़ नहीं सका। मैं उसे समझने का प्रयत्न करूंगा और जब समझ में आ जाएगी तब मैं कहूंगा कि बात समझ में आ गई ओर जब तक समझ में नहीं आएगी, तब तक कहूंगा कि अमुक व्यक्ति ने यह बात कही है, इसलिए मैं कहता हूं कि यह है, पर मैं नहीं जानता कि यह ऐसे ही है।' यह सत्य के प्रति विनम्र दृष्टिकोण है। यह विनम्र दृष्टिकोण तब ही आ सकता है जब व्यक्ति ज्ञानी होता है। बौद्धिक उदंड हो सकता है, ज्ञानी उद्दण्ड नहीं हो सकता । ज्ञानी वह होता है जो ध्यानी होता है। जो ध्यानी नहीं होता, वह ज्ञानी भी नहीं होता। ध्यानी होने का केवल यही अर्थ नहीं है कि व्यक्ति घंटा-भर आंख मूंदकर बैठ जाए, कायोत्सर्ग करे या श्वास और शरीर की प्रेक्षा करे। ध्यानी होने का अर्थ होता है अपने आपके प्रति जाग जाना। जो व्यक्ति अपने आपके प्रति जाग जाता है, अपने अस्तित्व के प्रति सजग हो जाता है और अपने आपको सत्य की खोज में लगा देता है वह ध्यानी होता है, फिर चाहे वह चले, बैठा रहे, खाए, पीए। ध्यानी होने का अर्थ है-सतत अप्रमत्त रहना, सतत भावक्रिया में संलग्न रहना। जिसकी मूर्छा टूट गई, वह ध्यानी बन गया। अस्तित्व-बोध : कब? कैसे?
हम आत्मा को इसीलिए नहीं जानते कि वह बहुत निकट है, बहुत सूक्ष्म है, व्यवहित है। मूर्छा का व्यवधान है। मूर्छा की ऐसी अभेद्य दीवार खड़ी हो गई है कि हम आत्मा को नहीं देख पाते, नहीं जान पाते। आत्मा विशुद्ध नहीं रही। उसमें विजातीय तत्त्वों का सम्मिश्रण हो गया। हम इस मिश्रण के कारण उसे नहीं जान पाते।
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