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९८ अप्पाणं सरणं गच्छामि
है। परन्तु बीमारी के स्रोत की चिकित्सा नहीं होती। बीमारी के स्रोत की चिकित्सा का तात्पर्य है-पूरे शरीर की चिकित्सा करना। यह स्थायी चिकित्सा है। दृश्य अवयव की चिकित्सा रोग की तात्कालिक चिकित्सा है। - इसी प्रकार सारी समस्याओं का स्थायी समाधान है प्रियता को समाप्त करना। एक दिन में यह कम नहीं हो सकती। धीरे-धीरे इसे कम करना होता है। प्रियता के संवेदनों को कम करते रहने से शेष सारे संवेदन कम होने लगेंगे।
प्रश्न है-प्रियता के संवेदन को कम कैसे करें? इसका उत्तर है-हम रेचन करना सीखें। दीर्घश्वास का प्रयोग इसकी प्रक्रिया है। दीर्घश्वास की प्रक्रिया में श्वास लंबा लेना होता है और लंबा ही छोड़ना होता है। यह मानसिक अशान्ति को मिटाने का महत्त्वपूर्ण उपाय है। जब श्वास का रेचन होता है तब भीतर की विकृतियां बाहर निकलती हैं। आप मानेंगे कि यह शारीरिक उपचार मात्र है। लम्बा श्वास लेने से ऑक्सीजन अधिक प्राप्त होगा और लम्बा श्वास छोड़ने से कार्बन का अधिक रेचन होगा। यह मात्र शारीरिक है।
यह कथन ठीक है। यदि कोरा दीर्घश्वास ही हो तो यह शारीरिक उपचार-मात्र होगा। किन्तु साधक दीर्घश्वास के साथ-साथ चित्त को निर्मल बनाने की भावना भी रखता है। उसका उद्देश्य होता है-चित्त को निर्मल बनाना, चित्त के विकारों को मिटाना। यह भावना अपना काम करती है और मूल प्रियता पर प्रहार करती है। दीर्घश्वास की प्रक्रिया में प्रियता की अनुभूति का भी साथ ही साथ रेचन होता है। ____ आप प्रयोग करें। गुस्सा आने लगे तब दो-चार दीर्घश्वास लें। क्रोध का आवेग शांत होने लगेगा। मन में अकस्मात् भय या वासना जाग जाए, तत्काल पांच-दस दीर्घश्वास लें। भय और वासना का आवेग कम हो जाएगा। आपको अनुभव होने लगेगा कि मन का भार कम हो रहा है, दबाव कम हो रहा है, समाधि प्राप्त हो रही है।
समाधि मानसिक समस्याओं का स्थायी समाधान है, किन्तु उसकी सिद्धि समय-सापेक्ष है।
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