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१०२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
कर सकता। यदि प्रस्थान कर भी लेता है तो आगे नहीं बढ़ सकता।
ढाई हजार वर्ष पूर्व की एक ऐतिहासिक घटना है। कोल जाति के लोगों ने क्षत्रियों पर आक्रमण करना चाहा। परस्पर संघर्ष चल रहा था। कोल जाति के लोग एकत्रित हुए। सेना बनाई। आगे प्रस्थान कर दिया। आगे जा रहे थे, पर मनों में क्षत्रियो का भय सता रहा था। क्षत्रियों के प्रहार उन्हें याद आने लगे। मन कमजोर हो गया। शरीर भी भय से कांपने लगा। प्रथम पंक्ति में चलने वाले सैनिकों ने सोचा-हम व्यर्थ ही मारे जाएंगे। वे पीछे खिसक गए। इसी प्रकार सारी सेना पीछे खिसकने लगी। वह अपने गांव आ पहुंची।न संग्राम प्रारम्भ हुआ था और न क्षत्रियों के प्रहार ही प्रारम्भ हुए थे। उससे पूर्व ही वे कमजोर हो गए और घर आ पहुंचे।
जब तक आत्मा के अमरत्व का बोध नहीं होता, अपने स्वतंत्र कर्तृत्व का बोध नहीं होता, अपने अस्तित्व और चैतन्य का बोध नहीं होता, तब तक वह समाधि की दिशा में प्रस्थान कर लेने पर भी संकल्प-विकल्प के जाल में फंसकर पीछे खिसक जाता है। समाधि की दिशा निर्विकल्प चेतना की दिशा है। समाधि की दिशा सारे विकल्पों को समाप्त करने की दिशा है। वहां पहुंचने पर सारे संकल्प और विकल्प समाप्त, मन को भटकाने वाली सारी प्रेरणाएं समाप्त, सारी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।
जिस व्यक्ति को सचाई का अवबोध नहीं होता, वह समाधि की दिशा में प्रस्थान करते ही यह सोचने लगता है-मैं आगे क्यों जाऊं? मैं ही आगे क्यों बहूँ? मैं आंखें बन्द कर ध्यान में क्यों बैठू? आंखें देखने के लिए हैं। उन्हें बन्द रखने का प्रयोजन ही क्या है? कान सुनने के लिए हैं, जीभ रसास्वादन के लिए है। फिर कानों का संयम और जीभ का संयम क्यों करूं? इस प्रकार वह व्यक्ति अपने मार्ग से खिसकते-खिसकते मूल स्थान पर आ जाता है। इसलिए यह अनिवार्य है कि समाधि की साधना करने वाले प्रत्येक साधक में अपने अस्तित्व
और कर्तृत्व के प्रति आस्था हो, उसका भान हो। जिसमें यह आस्था नहीं होती, जिसको इन सचाइयों का बोध नहीं होता, वह समाधि की दिशा में प्रयाण नहीं कर सकता और यदि करता है तो वह शीघ्र ही खिसककर असमाधि के दलदल में फंस जाता है, वहां से फिर निकल नहीं पाता। ___ समाधि का चौथा आधार है-मैं दुःख भोगने के लिए नहीं जन्मा हूं। यह बहुत ही मत्त्वपूर्ण सूत्र है। जिस व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि उसके भीतर असीम आनन्द है, वह व्यक्ति दुःख क्यों भोगेगा? कैसे भोगेगा? जिसको अपने असीम आनन्द का ज्ञान नहीं है, वह व्यक्ति दुःख भोग सकता है। जो व्यक्ति यह मानता है कि जैसी परिस्थिति होती है, वैसा ही उसे भुगतना पड़ता। है। यदि कठिनाई आती है तो उसे दुःख भुगतना पड़ेगा, उलझन आती है तो
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