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६४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
जैसे-जैसे मूर्च्छा का व्यवधान टूटेगा, प्रमाद की श्रृंखला टूटेगी, जागृति बढ़ेगी, अपने आप आत्मा का बोध होगा, अस्तित्व का बोध होगा । जो व्यक्ति तर्क के द्वारा, बुद्धि के द्वारा और शाब्दिक प्रपंच के द्वारा अपने आपको जानने का प्रयत्न करता है वह वैसा ही व्यर्थ प्रयत्न है जैसा कि पानी को बिलोकर मक्खन निकालना। किन्तु पानी से मक्खन निकालना भी कभी संभव हो सकता है । क्या कभी किसी ने दो शताब्दी पूर्व मिट्टी से चीनी निकालने की कल्पना की थी? आज तारकोल में से चीनी निकाली जाती है । भौगलिक युग में मिट्टी आज के युग की चीनी से अनन्तगुना मीठी थी । जैसे-जैसे काल बदला, स्वभाव बदला, स्निग्धता कम हुई, रूक्षता बढ़ी और मिट्टी में भी परिवर्तन आ गया। उसकी मिठास कम होती गई। फिर भी मिट्टी से मिठास निकाली जा सकती है । प्रत्येक द्रव्य से प्रत्येक पर्याय का उद्भव किया जा सकता है । ये सारे व्यर्थ प्रयत्न न हों, किन्तु तर्क, बुद्धि और शब्दों के मायाजाल के द्वारा अपने आपको जाना जा सकें, यह कभी संभव नहीं लगता । महावीर न पंडित थे, न विद्वान्
इन्द्रभूमि गौतम पारगामी विद्वान्, शास्त्रों के मर्मज्ञ और ज्ञाता थे । वे भगवान् महावीर के पास आए। उनके मन में एक जिज्ञासा थी । वे उसे कहीं प्रकट करना नहीं चाहते थे । उन्होंने इसे अहं का प्रश्न बना लिया। वे कभी यह जताना नहीं चाहते थे कि उनके मन में एक संशय है। वे भगवान् महावीर के पास आए। आते ही महावीर ने कहा- 'इन्द्रभूति ! आ गए ! तुम्हारे मन में एक संशय है कि आत्मा का अस्तित्व है या नहीं ?' यह सुनते ही इन्द्रभूति स्तब्ध रह गए। उन्होंने सोचा - यह क्या! मैंने आज तक अपना संशय किसी के समक्ष प्रकट नहीं किया, पर महावीर ने कैसे जान लिया? हजारो लोग संशय-निवारण के लिए मेरे पास आते हैं और यदि यह ज्ञात हो जाए कि मेरे मन में भी संशय है तो फिर मैं रहा ही क्या ? मेरा अस्तित्व और मेरी विद्वत्ता ही क्या ? पता नहीं महावीर ने क्या किया। उन्होंने मेरी चेतना की गहराई में रहे हुए संशय का पर्दाफाश कर डाला । उस संशय पर मैंने अनेक आवरण डाल रखे थे, पर महावीर ने उन आवरणों को अनावृत कर डाला । इन्द्रभूति का अहं इतना प्रबल हो उठा था कि वे आए थे महावीर को परास्त करने। उन्होंने सोचा- मेरे रहते दूसरा पंडित क्यों रहे? सही बात है । यदि महावीर पंडित होते तो अवश्य ही परास्त हो जाते। पर महावीर न पंडित थे और न विद्वान् । विद्वान् वह होता है जो शास्त्रों को पढ़ता है। पंडित वह होता है जो पुस्तकों को पढ़ता है । महावीर ने एक भी पुस्तक न पढ़ी हो, यह संभव है । उन्होंने एक भी ग्रंथ का अध्ययन नहीं किया था, यह सच है । इसलिए न वे पंडित थे और न विद्वान् । वे तो मात्र ज्ञानी थे। उन्हें अन्तर्दृष्टि प्राप्त थी । उन्हें कैवल्य उपलब्ध था । उन्हें आत्मा
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