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८४ अप्पाणं सरणं गच्छामि
प्रशंसा कर रहा था । वह जनता को बता रहा था कि आप जैसे नेता भारत में इने-गिने हैं। आप जैसा प्रामाणिक - ईमानदार व्यक्ति मिलना मुश्किल है ।' राजनेता ने हंसते हुए कहा- 'उसने मेरा यथार्थ मूल्यांकन किया है । यदि मैं मंत्री बनूंगा तो उसे स्वर्ग में भेज दूंगा ।'
शब्दों की इस दुनिया में जीने वाला व्यक्ति क्षण-क्षण बदलता जाता है । वह क्षण में अनुग्रह करता है और क्षण में शाप देने लग जाता है ।
रूप भी अनेक समस्याएं पैदा करता है। वह भीतर उतरकर व्यक्तित्व को चकनाचूर कर देता है ।
रस, गंध और स्पर्श भी अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करते हैं । मन के भाव भयंकर समस्याओं के जनक हैं ।
समस्या का हल : समाधि
इन्द्रिय और मन की परिधि में जीने वाले लोग हजारों-हजारों प्रकार की समस्याएं भोगते हैं। ये समस्याएं सरकार नहीं सुलझा सकती । अनाज की समस्या, मकान या कपड़े की समस्या को सरकार सुलझाने में सक्षम होती है । किन्तु इन्द्रियों और मन की समस्या को कोई नहीं सुलझा पाता। इन समस्याओं को सुलझाने में सक्षम है केवल व्यक्ति की अपनी समाधि । दूसरा कोई उपाय नहीं है । इसलिए हम आज समाधि की चिन्ता कर रहे हैं । जिस समस्या को समाज या राज्य के स्तर पर नहीं सुलझाया जा सकता उस समस्या को व्यक्ति के स्तर पर समाधि के द्वारा सुलझाया जा सकता है।
समस्या का अर्थ है - आश्रव और समाधि का अर्थ है-संवर । समस्या का अर्थ है - मूर्च्छा और समाधि का अर्थ है - चैतन्य का अनुभव। एक बात है, यदि मूर्च्छा नहीं होती तो आदमी दुनिया में जी नहीं पाता। हर व्यक्ति मूर्च्छा से जुड़ा हुआ है, इसलिए वह जी रहा है । हमारे शरीर की एक व्यवस्था है। शरीर में जब तक कष्टों को झेलने की क्षमता होती है, तब तक वह जागृत रहता है और जब कष्ट अधिक बढ़ जाता है और शरीर उसे झेलने में असमर्थ होता है तब आदमी मूर्च्छित हो जाता है । जब भयंकर बीमारी, अवसाद या कष्ट होता है तब आदमी तत्काल मूर्च्छा में चला जाता है। यह प्रकृति की अपनी व्यवस्था है कि जागृत रहकर आदमी उतने कष्ट को झेल नहीं सकता इसलिए उसे मूर्च्छित कर दो। या तो शरीर स्वयं उसे मूर्च्छित कर देता है या फिर डॉक्टर उसे बाहरी साधनों से मूर्च्छित का देता है ।
मूर्च्छा असमाधि है, समस्या है। चैतन्य का अनुभव समाधि है । सोना समस्या है और जागना समाधि । हम सोते हैं, यह सबसे बड़ी समस्या है । हम जागते हैं, यह समाधि है
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समाधि के विषय में एक धारणा है कि वह योगजन्य है। उसके अधिकारी
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