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६२ अप्पाणं सरणं गच्छामि
इसकी अचूक दवा है। वह मैं तुम्हें देता हूं। बहुत कीमती है। जब गुस्सा आए तब एक चूंट दवा ले लेना, किन्तु उसको पन्द्रह-बीस मिनट तक निगलना मत, मुंह में ही रखना। कुछ ही दिनों में तुम्हारी आदत बदल जाएगी।
दूसरा दिन युवती काम कर रही थी। उत्तेजना का अवसर आया। उसने तत्काल उस मूल्यवान् ओषधि की एक बूंट मुंह में ली। क्रोध का आवेग भी तात्कालिक होता है। वह पंद्रह-बीस मिनट कैसे रहे? उसका क्रोध शान्त हो गया। दूसरा प्रसंग आया। तीसरा और चौथा प्रसंग आया। उसने वैसा ही किया। तीन दिन तक प्रयोग किया। कलह शांत हो गया। घरवाले अचंभे में पड़ गए-इतना परिवर्तन कैसे हुआ?
पड़ोसी से पूछा-ऐसी क्या दवा है जो भयंकर क्रोध को भी शांत कर दे? पड़ोसी ने कहा-केवल पानी दिया था। जब पानी मुंह में होता है तब क्रोधी व्यक्ति बोल नहीं सकता। बोले बिना क्रोध का उभार नहीं होता। वह धीरे-धीरे शान्त हो जाता है। यही इसका रहस्य है।
यह भी एक उपाय है। इससे क्रोध आना रुकेगा नहीं, किन्तु क्रोध बाहर अभिव्यक्त नहीं होगा। इसलिए क्रोध का जो कटु परिणाम होना चाहिए वह नहीं होगा।
क्रोध आता है। उसका आभास होता है। प्रकृति ने आभास को मिटाने के लिए व्यवस्था भी की है। प्रकृति के पास व्यवस्था है कि कोई भी आवेग आए, चाहे वह ईर्ष्या हो या क्रोध, मान हो या माया, घृणा हो या प्रेम, उसको शान्त किया जा सकता है।।
एक सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ने लिखा है-उत्तेजना, संवेग आदि आएं तो उनको दबाना नहीं चाहिए, उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए। आवेगों को निकालने का सबसे अच्छा उपाय है रोना। रोने पर बड़ी-बड़ी खोजें हुई हैं। महिलाओं को हार्ट-ट्रबल का रोग कम होता है और पुरुषों में यह अधिक होता है। यह क्यों? कारण स्पष्ट है कि महिलाएं रोकर अपने दबावों को बाहर निकाल देती हैं और पुरुष रोने में संकोच करते हैं, इसलिए उनका दबाव भीतर एकत्रित होता जाता है और वह भारी बनकर कभी इतने जोर से धक्का मारता है कि हृदय उस आघात को सहन नहीं कर पाता। महिलाओं के आयुष्य में और पुरुषों के आयुष्य में भी बहुत बड़ा आनुपातिक अंतर होता है।
एक घटित घटना है। एक बालक था। उसका नाम था जीवक कुमार। वह बहुत तत्त्वज्ञानी और प्रबुद्ध था। उसके साथ एक विचित्र आदत जुड़ी हुई थी। जब भी वह भोजन करने बैठता, जरूर रोता। पांच-सात मिनट रोना उसका निश्चित क्रम था। भोजन की थाली परोसी हुई है। वह भोजन करने की तैयारी में है। पर वह रो रहा है, सिसक रहा है। एक दिन उस समय वहां मुनि आ
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