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५. देखो और बदलो
इस संसार में हर व्यक्ति बदलना चाहता है। ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जो जैसा हो वैसा ही रहना चाहता हो । बीज कभी बीज रहना नहीं चाहता और अंकुर कभी अंकुर रहना नहीं चाहता। बीज अंकुर होना चाहता है और अंकुर वृक्ष बनकर आकाश को छूना चाहता है । हर कोई बदलना चाहता है । जो नीचे है वह ऊपर जाना चाहता है और जो ऊपर है वह नीचे आना चाहता है । अपने स्थान पर स्थिर रहना कोई नहीं चाहता । तारे ऊपर हैं। वे उल्कापात के मिष से नीचे आना चाहते हैं। बीज जो भूमि में हैं, नीचे हैं, वे वृक्ष बनकर आकाश में जाना चाहते हैं । यह सनातन प्रक्रिया है ।
बदलने की चाह सबमें है । प्रश्न है बदलने का मार्ग कौन-सा है ? बदलने का एकमात्र मार्ग है- देखना । जो नहीं देखता, वह नहीं बदलता । जो बदला है वह इसी माध्यम से बदला है। बिना देखे बदलना संभव नहीं है। जो 'देखने' के मार्ग पर चला हो और न बदला हो, ऐसा कभी नहीं हुआ। जिसने देखना शुरू कर दिया, उसने बदलना भी शुरू कर दिया ।
प्रेक्षा- ध्यान का प्रयोग देखने का प्रयोग है और देखने के द्वारा बदलने का प्रयोग है । हमारा सूत्र है - आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो । आत्मा को देखना है और आत्मा के द्वारा आत्मा को देखना है । जिसके द्वारा देखना है वह भी आत्मा है और जिसे देखना है, वह भी आत्मा है । जो है वह भी आत्मा है और जिसे बदलना है वह भी आत्मा है । सब कुछ आत्मा ही आत्मा । आत्मा ही साधन है । आत्मा ही साध्य है । आत्मा ही ध्याता है और आत्मा ही ध्येय है । आत्मा
ध्यान है । बड़ी जटिल पहेली है । किसे देखें? कैसे देखें? किसके द्वारा देखें? क्या अखंड आत्मा के टुकड़े हो गए? सब कुछ टूटता है । क्या प्रेक्षा ध्यान ने अखंड आत्मा को भी तोड़ डाला ? एक है द्रष्टा आत्मा और एक है दृश्य आत्मा । देखने वाला भी आत्मा और देखा जाने वाला भी आत्मा । यह तथ्य समझ में नहीं आता । सचमुच एक जटिल पहेली है । यदि यह कहा जाता है कि आत्मा के द्वारा मकान को देखें, कपड़े को देखें, पुस्तक को या आदमी को देखें, तो बात समझ में आ सकती है। वहां आत्मा द्रष्टा बनती और दृश्य बनता अन्य पदार्थ | किन्तु आत्मा के द्वारा आत्मा को देखने की बात सहजगम्य नहीं है । 'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो' - यह बहुत बड़े सत्य की अभिव्यक्ति है । इसे गहराई में जाकर ही समझा जा सकता है
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