________________
प्रेक्षा एक प्रयोग है चिर यौवन का ५३
शारीरिक तनाव, मानसिक तनाव और भावनात्मक तनाव-ये तीनों प्रकार के तनाव कोशिकाओं में कठोरता पैदा करते हैं और यह कठोरता बुढ़ापे का मूल कारण है। जो व्यक्ति ध्यान का अभ्यास नहीं करता वह तनाव से सर्वथा मुक्त नहीं हो सकता। कुछेक लोग तनाव-मुक्ति के लिए विभिन्न औषधियों का सेवन करते हैं। लगता है कि कुछ घंटों के लिए उनका तनाव शिथिल हो गया है, पर वे ओषधियां और अधिक हानि करती हैं, उसके बहुत बुरे परिणाम आते हैं। तनाव को मिटाने का उपाय है-अपनी जटिल आदतों को बदलना, कषायों को कम करना, आवेगों को शान्त करना। यह सारा ध्यान से ही सम्भव हो सकता है। ___ धर्मगुरु समझाते रहे हैं कि क्रोध मत करो, क्योंकि उससे नरक मिलता है। आज का बुद्धिवादी युवक नरक के भय से किसी बात को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। क्रोध करने से नरक मिलता हो तो भले ही मिले, किन्तु यदि मुझे उससे सुख की अनुभूति होती है तो वह करणीय है, त्याज्य नहीं है। आज के आदमी में नरक का भय नहीं रहा। किन्तु यदि आज के आदमी को बताया जाए कि क्रोध से तनाव बढ़ता है, बीमारियां उत्पन्न होती हैं, कैंसर होता है, अल्सर होता है, नाना प्रकार के मनोकायिक रोग होते हैं, तो वह क्रोध को छोड़ने की बात सोच सकता है। क्रोध न करने का प्रश्न केवल परलोक से संबंधित नहीं है, वह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित है। यदि यह बात समझाई जाती है तो हर व्यक्ति उस पर ध्यान दे सकता है। तनावग्रस्त व्यक्ति असमय में बूढ़ा बन जाता है। प्रेक्षा-ध्यान एक प्रयोग है तनावमुक्ति का। तनाव निरुत्साह पैदा करता है। निरुत्साही व्यक्ति बूढ़ा होता है। युवा वह होता है जो उत्साह को कभी नहीं खोता।
आचार्य भिक्षु से पूछा-'प्रमाद का अर्थ क्या है?' उन्होंने कहा-'धर्म के प्रति अनुत्साह। फिर पूछा-'अप्रमाद का अर्थ क्या है?' उन्होंने कहा-'धर्म के प्रति उत्साह।
हम एक परिभाषा बनाएं। युवा वह होता है जो अप्रमत्त होता है। बूढ़ा वह होता है, जो प्रमत्त होता है। जो अप्रमत्त होगा उसमें धर्म का उत्साह होगा, अपने अस्तित्व के प्रति उत्साह होगा, अपने चैतन्य के जागरण के प्रति उत्साह होगा। बूढ़ा वह होता है जिसका धर्म या अपने अस्तित्व के प्रति उत्साह मर जाता है। बूढ़ा वह होता है जिसके चैतन्य की लौ बुझ जाती है। यौवन का कोई भी लक्षण दृग्गोचर नहीं होता। भावक्रिया : विकास का आदि-बिन्दु
प्रेक्षा-ध्यान एक प्रक्रिया है अप्रमाद के विकास की, चैतन्य के जागरण की। जिस व्यक्ति ने भावक्रिया का थोड़ा-सा भी अभ्यास किया है, वह व्यक्ति अप्रमत्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org