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अनेकान्त/54-1 sosecececececececececececececececaca
विहारमुपसंहृत्य मासं सिद्धशिलातले। प्रतिमा योग मासाद्य सहस्रमुनिभिस्सह।। -54/270 अयोग पदमासाद्य तुर्य शुक्लेन निर्रहरन्। शेष कर्माणि निर्लुप्त शरीर परमोऽभवत्।। -54/272
वे विहार बंद करके एक हजार मुनियों के साथ सिद्ध शिला पर स्थित होकर प्रतिमा योग धारण कर चौथे शुक्लध्यान से अयोग केवली पद प्राप्त करके शेप कर्मो को नष्ट कर निर्लुप्त शरीर परम (सिद्ध) हो गए।
जिनसेन (778-828) के हरिवंश पुराण सर्ग 60/36-37 के अनुसार धीवर पुत्री पृतिगन्धा राजगृह गई और
अत्र सिद्धशिलां वन्द्यां वन्दित्वा च स्थिता सती। कृत्वा नील गुहायां सा सती सल्लेखनां मृता॥
यहा वन्दना करने योग्य सिद्ध शिला थी उसकी वन्दना कर नीलगुहा में रहने लगी और सल्लेखना करके मृत्यु को प्राप्त हुई।
इसी पुराण के मर्ग 65/14 में लिखा है कि - उर्जयन्तगिरौ वज्री वजेणालिख्य पावनीमा लोके सिद्धशिलां चक्रे जिन लक्षण पंक्तिभिः।।
गिरनार पर्वत पर इन्द्र ने वज्र से उकेर कर इस लोक में पवित्र सिद्ध शिला का निर्माण किया और उसे जिनेन्द्र ले लक्षणों से युक्त किया।
पद्म पुराण सर्ग 48/186- 222 में वर्णन है कि अनंतवीर्य मुनि ने गवण को बताया कि
यो निर्वाण शिलां पुण्यामतुलामर्चितां सुरैः। समुद्यतां स ते मृत्योः कारणत्वं गमिष्यति॥ -- 186 जो देवों द्वारा पूजित अनपम पुण्यमयी निर्वाण शिला को उठावेगा वही
मृत्यु का कारण होगा। यह वृतान्त सुनकर राम लक्ष्मण आदि उस मला के दर्शन के लिए गए और वहां वे सब वन्दना करने लगे कि
अम्या च ये गता सिद्धिं शिलायां शीलधारिणः।
उपगीताः पुराणेषु सर्व कर्म विवर्जिताः॥ - 208 ८.५६२३SESSSSSSSSSSOSISCESS