Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 17
________________ १६ अनेकान्त इस तरह समन्तभद्र के उल्लिखित स्तुति ग्रंथों के गहरे अध्ययनसे यह बात बिल्कुल स्पष्ट होजाती है कि वे (समन्तभद्र) जैसे तार्किक एवं परीक्षा प्रधानी थे, वैसे ही वे पूरे अईद्भक्त भी थे । और उनकी यह अर्हद्भक्ति 'सुश्रद्धा' – सम्यक् श्रद्धा थी -अन्धभक्ति या अन्धश्रद्धा नहीं । मुख्तार श्री० पं० जुगलकिशोरजी सा० ने अपने 'स्वामी समन्तभद्र' में बिल्कुल ठीक हो कहा है कि "वास्तव में समन्तभद्र ज्ञानयोग, कर्मयोग [ वर्ष ६ और भक्तियोग तीनोंकी एक मूर्ति बने हुए थे ।" निःसंदेह स्वामी समन्तभद्रकी कृतियां उन्हें त्रियोग अथवा त्रिरत्न ( सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र ) की मूर्ति सिद्ध करती हैं । मैं समझता हूँ समन्तभद्रकी अद्भक्तिका थोड़ा सा परिचय पाठकोंको उपरोक्त पंक्तियों से जुरूर हो सकेगा। अन्तमें मैं उन जैसी अद्भक्तिकी हम सबको प्राप्ति होने की कामना और भावना करता हूँ । वाह रे, मनुष्य ... ! (ले० - महावीरप्रसाद जैन बी० ए० ) सड़ककी धूल में पड़ा उसका अर्थ-मृतक शरीर पीडाले एक बार फिर हिल उठा, और एक हल्की सी "भू" उसके फटे हुए जबड़ोंसे अनायास ही निकल पड़ी ! "क्या मेरे उपकारोंका यही बदला है ? सारी २ रात जाग कर मुहल्ले भरकी चौकीदारी ! उसदिन जान जोखिममें डाल कर सावन की वर्षा से भीगी हुई काली रात में इतने चोले अकेले मुकाबला! और यह सब कुछ बस केवल चन्द झूठे, थाली में लाकर छोड़े हुए टुकड़ोंके बदले !! अपनी गीजी कातर आंखोंको मेरे चेहरे पर जमा कर मानों वह पूछने लगा - क्या मनुष्य उपकारका बदला यूं ही दिया करते हैं ?" उस कुत्तेकी छटपटाती देहको देख कर मैं सोचने लगा - जिस रोटीमें जहर मिला कर इसके सामने फेंका गया होगा उसको कितनी प्रसन्नतासे लपक कर ऊपरसे ऊपर ही उचक लेनेकी चेष्टाकी होगी इसने ! फिर उस मृत्यु-ग्रासको हलकसे नीचे उतार यह उत्कण्ठा-पूर्वक ढातार के सामने खड़ा हो कृतज्ञताले पूछ हिलाने लगा होगा !---- और दातार ? उसके मुँह पर एक पैशाचिक मुस्कुराहट खेल गई होगी ज्ञा-मर साले सारी रात भूकता था !" यह उसने ऐसे भावसे कहा होगा जैसे उसने हिटलरका सिर काट लिया हो ! सचमुच मनुष्यता और पशुता उस विपरीत चोलोंमें दिखाई पड़ रही होंगी !! समय अपने सम्वाददाताओं से क्षमा 'अनेकान्त' में छपनेके लिये बहुत से ऐसे साधारण समाचार भेज देते हैं, जो साप्ताहिक पत्रोंके योग्य होते हैं, मासिक पत्रमें और खासकर ऐसे साहित्यिक पत्रके लिये उनकी कोई उपयोगिता नहीं होती । अतः ऐसे समाचारोंके लिये हम क्षमा चाहते हैं ।

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