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अनेकान्त
[वर्ष ४
२सागारधर्मामृत सटीक-मूललेखक,पंप्रवर श्राशाधरजीका बहुत कुछ परिचय मिल जाता है। आशाधर । अनुवादक, व्याख्यानव चस्पति पं० देवकी- आपकी उक्त स्वोपज्ञ टीकाके अनुसार पं० देवकीनन्दन जैनशास्त्री कारंजा । प्रकाशक, मलचन्द नन्दन जी शास्त्रीने इसका हिन्दी अनुवाद किया है। किसनदास कापड़िया, सूरत । पृष्ठसंख्या ३६४, बड़ा यद्यपि अनुवादमें कहीं कहीं टीकाके कितन ही स्थल साइज । मूल्य, सजिल्द प्रतिका ३)
छोड़ दिये गये हैं और कितने ही स्थलोंपर अनुवाद ___ इस ग्रंथका विषय अपने नामम ही स्पष्ट है। करने में संकोच भी किया गया है। उदाहरणके लिये पं० श्राशाधर जी विक्रमकी १३ वी शताब्दीक बहुश्रत पृष्ठ २४७ पर दिये हुए ३४३ श्लोककी स्वीपज्ञटीकाका प्रतिभाशाली विद्वान होगये हैं। अपने पूर्वाचार्योंके 'गृहत्यागविधि' वाला कितना ही उपयोगी अंश श्रावकाचार-विषयक ग्रंथोंका अच्छा मनन और परि- छोड़ दिया गया है। भाषा-साहित्यको कुछ और भी शीलन करके इस ग्रंथकी रचना की है । ग्रंथमें गृह- परिमार्जित करनेकी आवश्यकता थी । अस्तु; स्थोंकी क्रियाओंबा और उनके कर्तव्य दिका विस्तृत आपका यह उद्योग सगहनीय है । अच्छा होता यदि विवेचन है । ग्रंथकर्तान इम पर स्वयं एक टीका ऐसे ग्रंथकं अनुवादकं साथम अन्य आचार-विषयक भी लिग्बी है जो इस ग्रंथकं साथ माणिकचन्द्र ग्रंथ- ग्रन्थोंके कथनका तुलन त्मक टिप्पण भी लगा दिया मालामें प्रकाशिन हाचुकी है । इम टीकामे मलग्रन्थक जाता और प्रतिमा श्रादिविषयक कुछ कथनांक विवपद्यों का विस्तृत एवं उपयोगी विवंचन किया है। चनात्मक परिशिष्ट भी लगा दिये जाते । इमकं सिवाय. श्रावकाचारविषयक ग्रन्थों में यह अपनी जाडका एक संस्कृत टीकाम प्रयुक्त हुए अथवा 'उक्तं च' आदि ही ग्रन्थ है।
रूपसं उद्धत प्राचीन पद्योंकी अकादि क्रममे एक ग्रंथकं प्रारंभमें अनुवादक जी ने ग्रंथक प्रत्यक सूची भी माथमे लगाई जानी चाहिये थी। इन सबके अध्यायका मंक्षिप्त परिचय विषय प्रवेश' शीर्षकके हानेपर प्रस्तुत संस्करणकी उपयोगिता और भी नीचे हिन्दी भापामें लगा दिया है, जिससे ग्रंथक अधिक बढ़ जानी। फिर भी पह संस्करण अपने प्रतिपाद्य विषयका संक्षिप्त परिचय पाठकोंको मालता- पिछले संस्करणकी अपेक्षा बहुत कुछ उपयोगी है। से हो जाता है। इसके पश्चात् ढाई फार्मकी उपयोगी छपाई माधारण और कहीं कहींपर अनेक अशुद्धियोंको एवं महत्वपूर्ण प्रम्तावना है, जो जैन ममाजकं प्रसिद्ध लिये हुए है । आशा है कापड़िया जी अगले संस्करण माहित्यसंवी विद्वान पं० नाथगम जी प्रेमी चम्बईकी में इन मब त्रुटियोंकी पूर्ति करके उसे और भी उपलिखी हुई है। इसमें ऐतिहासिक दृप्रिम पं० श्राशा- यागीबनानेका प्रयत्न करेंगे। धरजीक विषयमे बड़े परिश्रमसं महत्वपूर्ण मामग्रीका
-परमानन्द शास्त्री मंकलन किया गया है। इमस जिज्ञासुओं का पं०