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२. हिंसा की जड़
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मूल और पत्र --ये पेड़ के दो अंग हैं । इनके आधार पर हमारी मानसिक वृत्तियों को समझाने का प्रयत्न किया गया। जड़ वह होती है जहां से सारा विकास होता है । पत्ता वृक्ष का एक विकास है । वह स्थायी तत्त्व नहीं है । पत्ता आता है और चला जाता है । बसंत आता है, पत्ते आ जाते हैं । पतझड़ आता है, पत्ते चले जाते हैं किंतु जड़ स्थायी रहती है । जब तक जड़ है, तब तक पेड़ है। जड़ समाप्त तो पेड़ समाप्त, पत्ते समाप्त और सब कुछ समाप्त ।
एक है जड़ की बात और एक है पत्तों की बात । पत्तों की बात बहुत छोटी बात होती है । उसका बहुत ज्यादा मूल्य नहीं होता। जड़ की बात का बहुत बड़ा मूल्य होता है । इसीलिए आदमी हर विषय में खोजता है कि इसकी जड़ कहां है ? इसका मूल आधार क्या है ? जब तक मूल का पता नहीं चलता, आदमी को संतोष नहीं होता । हिंसा के बारे में भी आज यह प्रश्न पूछा जा रहा है और इस पर काफी चिंतन चल रहा है कि हिंसा का मूल क्या है ? हिंसा की जड़ क्या है ? उस जड़ को हमें पकड़ना हैं । हमारे सामने भी प्रश्न है कि हिंसा की जड़ कहां है ? इस पर अनेक क्षेत्रों के लोगों ने अनेक विचार प्रकट किए हैं।
विभिन्न मत : विभिन्न दृष्टिकोण
विज्ञान की एक शाखा है आनुवंशिकी विज्ञान । आनुवंशिकी वैज्ञानिक बतलातें हैं - हमारे सारे व्यक्तित्व का निर्माण जीन के द्वारा होता है । वे हमारे संस्कार-सूत्र हैं और उनके द्वारा सारा निर्धारण होता है। हिंसा की जड़ है जीन । जीन आनुवंशिक है । वह माता-पिता के द्वारा प्राप्त होने वाला है । इसलिए उसमें हमारा कोई वश नहीं है । अनुवंश से प्राप्त, विरासत में प्राप्त संस्कार है, इसलिए मनुष्य जाति को हिंसा को भोगना है और हिंसा के परिणामों को भोगना है । उसे छोड़ने का कोई उपाय नहीं है । यह मत है आनुवंशिकी वैज्ञानिकों का ।
जीन वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं । वे हिंसा की जड़ कहीं दूसरी जगह खोजते हैं । मनोवैज्ञानिक भी इससे सहमत नहीं हैं । रसायन वैज्ञानिकों का और मनोवैज्ञानिकों का मत है कि हिंसा की जड़ मौलिक मनोवृत्ति है । मनोविज्ञान में मौलिक मनोवृत्तियों के अनेक वर्गीकरण हैं । उनमें युद्ध को
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