Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ हिंसा की जड़ अहिंसा के द्वारा की जा सकती है। इस सचाई को हम जानते हैं। हमारे सामने पारसमणि है। पर बाधक तत्त्व इतना काम कर रहे हैं कि उस पारसमणि को जानते हुए भी सोना नहीं बना रहे हैं। सारे बाधक तत्त्व वहां काम कर रहे हैं। उनका काम बराबर चल रहा है। कभी कोई प्रश्न सामने आ जाता है, तो कभी कोई प्रश्न सामने आ जाता है।' अहिंसा की बात करें, हिंसा न करें तो हिंसा के बिना व्यक्ति को अस्तित्व समाप्त हो जाता है। अहिंसा के विकास में एक अवरोध आ गया। कभी प्रतिपक्ष का प्रश्न सामने आ जाता है कि सामने शत्रु है और अहिंसा की बात की तो क्या होगा ? बहाना सामने आ जाता है। हिन्दुस्तान के सामने पाकिस्तान एक बहाना बन जाता है कि हिन्दुस्तान एकजुट नहीं रहा तो पाकिस्तान आक्रमण कर देगा। पाकिस्तान के सामने हिन्दुस्तान एक बहाना बन जाता है कि पाकिस्तान एकजुट नहीं रहा तो हिन्दुस्तान आक्रमण कर देगा। ये सारे बहाने और सारे बाधक तत्त्व सामने आ जाते हैं। हमें फिर इस प्रश्न पर विचार करना है कि परिवेश को बदलना है और परिवेश के साथ-साथ इन तत्त्वों को भी बदलना है। रुकना नहीं है। मौलिक मनोवृत्ति को भी बदलना है । जीन को भी बदलना है और कर्म को भी बदलना है । यद्यपि आनुवंशिकी वैज्ञानिक बदलने की बात को नहीं मानते । वे कहते हैं--जीन को नहीं बदला जा सकता । मनोवैज्ञानिक भी मौलिक मनोवृत्ति को बदलने की बात को नहीं मानते । कभी मानते हैं तो बड़ी मुश्किल से मानते हैं। किंतु कर्मवाद में यह बात मानी गई कि कर्म को बदला जा सकता है । सब कर्मवादी इस बात को नहीं मानते कि कर्म को बदला जा सकता है । पर कुछ दार्शनिकों ने इस पर गंभीरता से विचार किया कि कर्म को बदला जा सकता है। न बदला जा सके तो फिर साधना और तपस्या सारे बेकार हो जाते हैं, कोई अर्थ नहीं होता। हमारे सामने एक सूत्र आ गया बदलने का, परिवर्तन का। हमें परिवर्तन करना है। जड़ को भी बदलना है और वातावरण को भी बदलना है, परिवेश को भी बदलना है। दोनों को बदलना है। पत्तों को भी बदलना है और मूल को भी बदलना है । हमें बदलना है । वैसा ही नहीं रहना है। कुम्हार जा रहा था । साथ में बहुत गधे थे। एक कोई मनचला व्यक्ति सामने मिला । बहुत सारे मनचले होते हैं, बहुत सारे मजाकी लोग होते हैं जिन्हें मजाक करने में बड़ा आनंद आता है । उसने कहा, गधे के पिता को नमस्कार । कुम्हार भी बड़ा चालाक और होशियार था । बोला, हजार वर्ष जीओ मेरे बेटे । ___ अब गधा बने नहीं रहना है । बदलना है, परिवर्तन ला देना है। संवेदना का सूत्र बदलने की परिभाषा क्या है ? परिवर्तन की प्रक्रिया क्या है ? हिंसा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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