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अहिंसा और ध्यान
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भाषा में नहीं सोचता, केवल दूसरे के अहित की बात सोचता है और वैसा करता है, इसलिए समाज में, परिवार में हिंसा चलती है ।
दर्शन हो स्वयं का
ध्यान एक प्रयोग है विधायक दृष्टि के विकास का । प्रेक्षा ध्यान में बार-बार कहा जाता है कि अपने आपको देखें, अपने द्वारा अपने को देखें । अपने आपको देखना एक ऐसा सूत्र है, जो निषेधात्मक भावों को मिटाता है. और विधायक भावों का निर्माण करता है । जब व्यक्ति अपने आपको देखने लग जाएगा और दूसरा सामने नहीं होगा तो निषेधात्मक भाव अपनी मौत मरने लग जाएगा । हमारे सारे निषेधात्मक भाव इसी आधार पर पनपते हैं जब हम केवल दूसरों को देखते हैं। दूसरों को देखते-देखते हमारी ऐसी स्थिति हो जाती है कि अपनी बात बिलकुल भुला दी जाती है और जहां से विधायक भाव का स्रोत फूटता है, उसे बन्द कर दिया जाता है, निषेधात्मक विचारपनपने लग जाते हैं ।
आत्म-दर्शन, आत्म-निरीक्षण, अनित्य अनुप्रेक्षा, सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा – ये सारे प्रयोग हैं, जो निषेधात्मक भावों को समाप्त करते हैं और विधायक भावों को उजागर करते हैं ।
एक उपाय है ध्यान
ध्यान एक प्रयोग है, एक उपाय है विधायक भाव के जागरण का । मैं भी परिवर्तन ला सकता हूं । यह एक विधायक भाव है और इसका अर्थ है: हिंसा के बहुत बड़े सहायक तत्त्व पर कड़ा प्रहार । इससे व्यक्ति के सारे बुरे चितन समाप्त होते हैं । कितने लोग हैं जो बुरा चितन नहीं करते, अपना आत्म विश्लेषण करते हैं, आत्म-निरीक्षण करते हैं कि बुरा चितन मन में न. आए। क्या एक दिन भी खाली जाता है ? कोई कह सकता है कि आज का दिन ऐसा गया कि कोई बुरा विचार मन में नहीं आया ? चाहे वह हिंसा का विचार हो, चाहे वह झूठ बोलने का विचार हो, चाहे चोरी का विचार हो और चाहे कोई दूसरे भाव का विचार हो । जो आदमी इनसे दूर हो गया, फिर भी विचार पीछा नहीं छोड़ता, क्योंकि हमारे भीतर इतने संस्कार भरे पड़े हैं कि बाहर से निमित्त नहीं मिला तो भीतर के संस्कार जागने शुरू हो जाते हैं ।
आंतरिक कारण
जगत् में सामान्यत: कार्य-करण का सिद्धांत चलता है । सामान्य व्यवहार में और तर्कशास्त्र में भी यह कहा जाता है कि कारण के बिना कोई कार्य नहीं होता । पर बिना कारण के भी कार्य हो जाता है । कोई कारण नहीं, पर लोभ की भावना जाग गई । कोई कारण नहीं है, किन्तु कर्म का संस्कार
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