Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 164
________________ १५० अहिंसा के अछूते पहलु रहता है, पागल बनता है और मन से परे चला जाता है तो वह शुद्ध चेतना में चला जाता है। उस क्षण में नैतिकता की संभावना की जा सकती है। नैतिकता का विकास तब होता है जब हम मन के खेलों से परे चले जाते हैं। नैतिकता का आधार . मन को एकाग्र करना और मन को आलंबन देना, एक प्रयोग है। यह प्रारम्भिक विराम है, मध्यवर्ती विराम है। व्यक्ति को यहां अटकना नहीं है । पहले मन पर एकाग्र होता है और किसी आलंबन पर टिकना है । किन्तु बाद में उसे भी छोड़ देना है, निरालंब बनना है । पहले विकल्प और फिर निर्विकल्प । पहले विचार की अवस्था में और फिर निविचार की अवस्था तक पहुंचना है। यह शुद्ध चेतना की भूमिका है। वहां पहुंचे बिना परमार्थ की चेतना नहीं जागती । नैतिकता का आधार है परमार्थ चेतना का विकास । अनैतिकता का आधार है स्वार्थ जब तक स्वार्थ चेतना प्रबल रहेगी, मन के सारे खेल खेले जाएंगे और अनैतिकता का विकास होता रहेगा । जिस क्षण परमार्थ की चेतना जाग जाएगी। अनैतिकता का आधार हिल जाएगा, उसकी संभावना समाप्त हो जाएगी। जिसमें परमार्थ की चेतना जाग गई, वह अनैतिक हो ही नहीं सकता । जो अनैतिक आचरण और व्यवहार करता है, उसमें परमार्थ की चेतना जागी ही नहीं है। यह एक तर्कशास्त्रीय नियम, व्याप्ति बनाई जा सकती है । तर्कशास्त्र में एक व्याप्ति है-जहां-जहां धुआं होता है वहां-वहां अग्नि होती है। यह एक नियम बन गया। एक नई तर्कशास्त्रीय व्याप्ति बनाई जा सकती है जहां-जहां स्वार्थ की चेतना है वहां-वहां अनैतिकता है और जहां-जहां परमार्थ की चेतना है वहां-वहां नैतिकता है। नैतिकता तभी संभव है जब हम मन की समस्याओं से परे जाते हैं, चंचलता से परे जाते हैं। बड़ी समस्या है चंचलता की । वर्तमान समाज में जितनी मानसिक चंचलता बढ़ी है, अतीत में रही या नहीं रही, कहा नहीं जा सकता । पदार्थ के विकास के साथ-साथ चंचलता बढ़ती है । तेज गति के साथ-साथ भी चंचलता बढ़ती है । जो गति की तीव्रता आई है, उसने चंचलता को बढ़ावा दिया है, धैर्य का ह्रास किया है। आदमी धैर्य रख ही नहीं सकता, प्रतीक्षा कर ही नहीं सकता। चंचलता बढ़ी है, अधैर्य बढ़ा है, असहिष्णुता बढ़ी है। प्राचीन काल में कहा गया जिसमें धृति नहीं होती, वह साधना नहीं कर सकता। आज धृति जैसी बात ही नहीं है । आदमी धैर्य रख ही नहीं सकता। आधा घंटा में वह डॉक्टर बदल लेता है, जीवन साथी बदल लेता है । धैर्य नाम की वस्तु ही कहां है ? मन की इतनी चंचलता बनी रहे और अनैतिकता की समस्या का समाधान भी हो जाए यह संभव नहीं लगता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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