Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 188
________________ १७४ अहिंसा के अछूते पहलु गहरा संबंध है। जिसने इस सत्य को जान लिया, उसने मानसिक शांति को अक्षुण्ण बना लिया। जो असत्य के सहारे जीता है, उसकी मानसिक शांति बार-बार विचलित होती रहती है। सत्य को जिएं तीसरी सचाई है-मेरा कुछ भी नहीं है। आदमी मानता है-- सब कुछ मेरा है पर वास्तव में उसका कुछ भी नहीं है। व्यावहारिक सचाई है कि सब कुछ मेरा है और वास्तविक सचाई है कि मेरा कुछ भी नहीं है। व्यावहारिक सचाई के आधार पर व्यक्ति कहता है--धन मेरा है, परिवार मेरा है, घर मेरा है । इस सचाई को नकारा नहीं जा सकता। यदि धन उसका नहीं होता तो वह परिवार का सहयोग कैसे कर पाता ? यदि घर उसका नहीं होता तो वह सीधा उसमें कैसे घुस पाता? यह व्यावहारिक सचाई है, वास्तविक सचाई नहीं है। हम व्यावहारिक सचाई से पूर्णरूप से परिचित हैं पर वास्तविक सचाई से परिचित नहीं हैं। आदमी वास्तविक सचाई को जानता है, पर उससे परिचित नहीं है। जानना एक बात है और परिचित होना दूसरी बात है । परिचित होने के लिए उसके अति निकट जाना होता है, उसको जीना होता है । उसकी उपासना करनी होती है। उपासना का अर्थ है—निकट जाकर बैठना । स्चाई का सम्पर्क होना एक बात है और उसके निकट बैठना, उससे परिचित होना दूसरी बात है। आदमी जब बाजार से गुजरता है तब अनेक वस्तुओं के साथ सम्पर्क होता है पर परिचय नहीं होता । सचाई का परिचय तभी होता है जब उसका अभ्यास होता है, अन्यथा संपर्क मात्र होता है, परिचय नहीं होता। ___ जब तक सत्य भोगा नहीं जाता, वह जाना हुआ सत्य होता है । जब सत्य जिया जाता है तब वह भोगा हुआ सत्य कहा जाता है। जब तक सत्य जिया या भोगा नहीं जाता तब तक वह सचाई अपनी सचाई नहीं बनती, अपने काम की नहीं होती । "मेरा कुछ भी नहीं" यह बहुत बड़ी सचाई है। हम अकिंचन हैं महान् सिकन्दर को इस सचाई का अनुभव जीवन के अन्तिम क्षणों में हुआ। उसने आदेश दिया-जब मेरी अर्थी निकाली जाए तब दोनों हाथ बाहर रहें, खुले रहें । लोगों ने पूछा-क्यों ? उसने कहा, लोग यह जान सकें कि सिकन्दर ने बहुत बटोरा है, पर जाते समय हाथ खाली हैं, अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा रहा है। वास्तव में हम अकिंचन हैं । अकिंचन अवस्था में यहां से हमें प्रस्थान करना है। किंचन होना भी एक सचाई है तो "मैं अकिंचन हूं" इसकी निरंतर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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