Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 187
________________ सत्य और मानसिक शांति १७३ अर्हत् ही शरण होते हैं, सिद्ध ही शरण होते हैं, साधु ही शरण होते हैं और धर्म ही शरण होता है। जब शेष सारे माने हुए शरण किचित्कर हो जाते हैं तब यह शरण चतुष्टयी ही त्राण देती है, शरण बनती हैं। व्यावहारिक पहल को अन्तिम न माने व्यवहार का जो पहलू है, वह एक सचाई है, व्यावहारिक सचाई है। हम उसे ही यथार्थ या अंतिम न मान लें। जो वास्तविक सचाई है उससे भी परिचित हों। हम सहयोग, त्राण, शरण की बातों में जी रहे है, व्यावहारिक त्राणों में जी रहे हैं किन्तु इसकी निरंतर स्मृति बनाए रखें कि मैं वास्तव में अत्राण हूं। यह दूसरी सचाई है। जो व्यक्ति इसको जान लेता है, इसका प्रयोग करता है, वह अनेक कठिनाइयों से बच जाता है। एक व्यक्ति को मैंने देखा । जब वह स्वस्थ था तब उसके चारों ओर दसों-बीसों लोग मंडराते थे, भीड़ लगी रहती थी। जब वह बीमार हो गया, शक्ति क्षीण हो गई, लोगों की भीड़ कम हो गई। कोई पास में जाता ही नहीं । इसका उसे तीव्र संवेदन होता । वह सोचता-वह भी एक दिन था जब सैकड़ों व्यक्तियों की भीड़ मेरे द्वार पर लगी रहती थी और आज कोई नहीं पूछता। मैंने उससे कहा--यदि तुम इस संवेदन में जीओगे तो जीवन कष्टदायी बन जाएगा, भारी बन जाएगा। एक तो बीमारी का कष्ट और दूसरा एकाकीपन का कष्ट । दोनों से दिमाग इतना भारी रहेगा कि तुम जी नहीं सकोगे । उसने पूछा- इसका समाधान क्या है ? मैंने कहा, इस सचाई का अनुभव करो कि मैं अकेला हूं, मेरा कोई नहीं है। साथ ही साथ धर्म और अर्हत की शरण लो। उसने वैसा ही किया और उसका सारा मानसिक कष्ट समाप्त हो गया। वह अपना जीवन पूर्ण आनन्द के साथ जीने लगा, उस अवस्था में भी पूर्ण सुख का संवेदन करने लगा। संबंध सत्य और मानसिक शान्ति में मृत्यु और बीमारी से कोई नहीं बचा सकता। डाक्टर भी तब तक सहयोग दे सकते हैं, जब तक हमारी प्राणशक्ति सक्रिय है। जब प्राणशक्ति चुक जाती है तब डाक्टर भी कुछ नहीं कर सकते । जब रेसिस्टेन्ट पॉवर समाप्त हो जाता है, डाक्टर या औषधि कुछ नहीं कर सकती। उस स्थिति में व्यक्ति अपने आपको बहुत असहाय अनुभव करता है । कुछ अवसर हैं, क्षण हैं, जहां व्यक्ति स्वयं को अकेला अनुभव करता है। मैं त्राण हूं' इस वास्तविक सचाई का जिस व्यक्ति को अनुभव हो जाता है, वह शरीरगत बीमारी या प्रतिकूल स्थिति का कष्ट तो भोगेगा पर मानसिक कष्ट नहीं भोगेगा। जब तक इन सचाइयों को नहीं जाना जाता, मानसिक शांति रह नहीं सकती, टिक नहीं सकती। सत्य का और मानसिक शांति का बहत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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