Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 194
________________ अहिंसा के अछूते पहलु लौकिक चेतना में ऐसा नहीं होता । यह साधारण चेतना का कार्य नहीं है । जब आदमी में अलौकिक चेतना जागती है तो ऐसी बातें घटित होती हैं, आदमी में इतने ऊंचे विचार आते हैं। रत्नों के शुभ, अशुभ होने का विवेचन प्राचीन साहित्य में उपलब्ध है। रत्नों को धारण करना शुभ भी होता है और अशुभ भी होता है। वे इष्टः साधक भी हैं और अनिष्ट-साधक भी हैं। कलकत्ता के एक विद्वान् भट्टाचार्य ने इसी विषय की एक प्रामाणिक पुस्तक लिखी है । उसका शीर्षक है "जेम्स"। उसमें इष्ट-अनिष्ट परिणाम घटित करने वाले विभिन्न रत्नों का घटना सहित उल्लेख है । विराग है अलौकिक आचार्य हेमचंद्र ने भगवान महावीर की स्तुति में लिखा विषयेषु विरागस्ते, चिरं सहचरेष्वपि । योगे सात्म्यमदृष्टेऽपि, स्वामिन्निदमलौकिकम् ॥ भगवान् ! इन्द्रियों के विषय, जो आपके परिचित साथी थे. उनसे आप विरक्त हो गए, उनके प्रति आपके मन में विराग जाग गया और साधना या योग, जो आपके घर में नए-नए आए हैं, उनके प्रति आपका राग हो गया, अनुराग हो गया। यह अलौकिकता है आपकी। उनके साथ इतना तादात्म्य हो गया कि आप और वे दो नहीं, एक हो गए । यह आपका अलौकिक रूप है । दो तत्व हैं। एक है राग और दूसरा है विराग। राग लौकिक चेतना है और विराग अलौकिक चेतना है । राग स्वाभाविक लगता है । पदार्थ के प्रति राग होना कोई आश्चर्य नहीं है। यह हर व्यक्ति में होता है। एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा जिसमें पदार्थ के प्रति राग न हो, विषयों के प्रति अनुरक्ति न हो। किन्तु विराग होना, विरक्ति होना वास्तव में आश्चर्यकारी घटना है। विराग स्वाभाविक नहीं है धनाढ्य पिता का पुत्र था जम्बूकुमार। उससे कहा गया- तुम्हारी शादी करेंगे। वह बोला---- मुझे शादी नहीं करनी है । यह है विराग । मातापिता का आग्रह प्रबल था। उसके सामने जंबूकुमार को झुकना पड़ा। उसने शादी की स्वीकृति देते हुए कहा-मुझे अन्ततः मुनि बनना है। शादी हुई। प्रथम रात्रि में ही जम्बूकुमार दीक्षित होने की बात कहते हैं। पत्नियां उन्हें सुखोपभोग में फंसाने का प्रयत्न करती हैं। जम्बूकुमार अपने निश्चय पर अडिग रहे । यह है विराग । राग होना स्वाभाविक है। अन्तर्मुखी हुए बिना विराग नहीं आता। आन्तरिक चेतना के जागने पर ही इसका जागरण होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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