Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 206
________________ १९२ अहिंसा के अछूते पहलु घरवाले आए और पूछा कि क्यों चिल्ला रहे हो ? उसने कहा-देखो, किसी ने मेरा हाथ पकड़ लिया है । लोगों ने देखा कि यह तो बड़ा मूर्ख आदमी है। उन्होने कहा-लड्डू को छोड़ो। उसने कहा-कैसे छोड़ दूं। यदि छोड़ दूं तो खाऊंगा क्या ? मोक्ष : बंधातीत अवस्था .... ऐसा लगता है कि आदमी भी इसी प्रकार भूत को पकड़े हुए है । मुट्ठी को वह खोलना नहीं चाहता और ऐसे हाथ बाहर नहीं आ रहा है। इतना बंधन हो गया हमारा पदार्थ के साथ, इतना जकड़ लिया गया कि बंधन छुट नहीं रहा है । बंधन है पदार्थ के साथ, क्योंकि पदार्थ के बिना काम नहीं चलता, पदार्थ के साथ संबंध भी रखना होगा, परिवार के बिना भी काम नहीं चलेगा, परिवार के साथ संबंध जरूरी है, सब कुछ जरूरी है, सबसे बंधा हुआ हं और घिरा हुआ हूं। पर आखिर अकेला हूं। बंधन के बीच, परिवार के बीच और पदार्थ के बीच रह कर भी अपनी अंतिम सचाई, अपने अकेलेपन का अनुभव करें, इसका नाम है-मोक्ष । यह है बंधनातीत अवस्था । मैं गुलाम का गुलाम नहीं हूं डायेगिनिज का गुलाम चला गया। मित्रों ने सोचा, गुलाम चला गया और अब रोटी बनाने की दिक्कत होगी, चलो गुलाम को खोज लाएं। उस समय दार्शनिक ने, उस संत ने मार्मिक उत्तर दिया। उसने कहा, मैं नहीं जाऊंगा । गुलाम को मेरी जरूरत नहीं है। अगर उसे जरूरत होती तो वह नहीं जाता । मैं गुलाम को खोजने जाऊं, इसका अर्थ है-मैं उसका गुलाम बनूं, गुलाम का भी गुलाम बनूं, यह नहीं हो सकता। मनोरचना बदले आदमी पदार्थ से इतना बंध जाता है कि बस, पदार्थ की खोज में ही लगा रहता है। हजार रुपए आपके गुम हो गए, क्योंकि उन्हें आपकी जरूरत नहीं है, पर आपको उनकी जरूरत हैं, क्योंकि उनके बिना काम नही चलता। चेतना की ऐसी रचना बंधनकारक मनोरचना । मनोरचना ऐसी हो-पदार्थ जो आया, काम में लिया, भोगा और फिर चला गया तो चला गया, रहा तो रहा और चला गया तो चला गया । आना-जाना कुछ भी नहीं । इस प्रकार की मनोरचना मोक्ष की मनोरचना है। जीवन निर्माण के तीन सूत्रों में सबसे पहला सूत्र है-अपना बोध, अपनी जानकारी । दूसरा सूत्र है-काम और अर्थ के प्रति सम्यक दृष्टिकोण और तीसरा सूत्र है--मोक्ष के प्रति सम्यक् दर्शन । इन तीन सूत्रों का अगर अनुशीलन और चिंतन किया जाए तो जीवन का नया निर्माण संभव बन पाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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