Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 193
________________ ध्यान और अलौकिक चेतना १७ε हाथ में लेकर बुद्ध के दांत तोड़ने की तैयारी में है । महात्मा बुद्ध शांत और स्थिर खड़े हैं । महाराष्ट्र के संत एकनाथ गोदावरी में स्नान कर आ रहे हैं और एक व्यक्ति उन पर थूक देता है । फिर वे 'लौट कर पुनः स्नान करते हैं और आते समय पुनः वही व्यक्ति थूक देता है । ऐसा एक-दो बार नहीं, बीस बार होता है । एकनाथ वही शांतभाव बनाए हुए हैं । यह सारा परिणाम है प्रतिक्रिया मुक्त चेतना का अलोकिक चेतना का | साधना के इतिहास में हजारों ऐसी घटनाएं हैं। साधु-संन्यासी ही नहीं, कुछेक गृहस्थ भी ऐसे हुए हैं, जिनमें प्रतिक्रियामुक्त अलौकिक चेतना का जागरण हुआ था । श्रीमद् राजचन्द्र जवाहरात का व्यापार करते थे । एक बार एक व्यक्ति से सौदा तय किया । रुक्का लिखकर दे दिया । बाजार तेज हुआ। वह व्यक्ति घबरा गया । पचास हजार का नुकसान | श्रीमद् राजचंद्र ने उसकी स्थिति देखी । उनका मन करुणा से भर गया । उन्होंने उस व्यापारी से रुक्का मांगा। पहले तो वह डरा कि रुक्का हाथ में लेकर मेरे पर केस करेंगे आदि-आदि । उसने श्रीमद् को रुक्का दिया | श्रीमद् ने रुक्का लेकर दूध पी सकता है खून नहीं । तुम्हारा और हमारा हजार का नुकसान हो रहा है, वह सहनीय है ।" रुक्का फाड़ डाला | कहा - मित्र ! श्रीमद् सौदा रद्द | मुझे पचास यह कहते हुए श्रीमद् ने ऐसा व्यवहार लौकिक चेतना में संभव नहीं । लौकिक चेतना वाला व्यक्ति अल्प लाभ के लिए भी दूसरे को निचोड़ने में कसर नहीं रखता । रत्न भी अशुभ होता है बीदासर के एक श्रावक थे । उनका बेटा मर गया । इस आकस्मिक मृत्यु से सब हड़बड़ा गए। कारण ज्ञात नहीं हुआ । सेठ उदासी से समय बिता रहे थे । एक दिन एक मित्र आया । उसने सेठ के पुत्र की आकस्मिक मृत्यु का कारण जानना चाहा । सेठ ने कहा — कारण ज्ञात नहीं | पर बेटा मर गया, यह सत्य है । उस व्यक्ति की दृष्टि सेठ की अंगुली में पहनी हुई अगूंठी पर पड़ी । वह हीरे की अंगूठी थी मित्र ने कहा – सेठजी ! अंगूठी का यह हीरा अशुभ है आपको अनेक कठिनाइयां सहन करनी पड़ रही हैं । इसे सेठ को बात जंची। उन्होंने अपने आदमी को अंगूठी देते हुए कहा – जाओ, इसे कुएं में डाल आओ । मित्र ने कहा— सेठजी ! कुएं में क्यों डलवा रहे हैं इसे बेच दीजिए । यह कीमती हीरा है । खरीदने वाले को तो कुछ भी पता नहीं चलेगा । सेठ ने कहा — मित्र ! । । इसी के कारण आप उतार दें । मैं अपने पुत्र का वियोग सह रहा डालना नहीं चाहता । अंगूठी कुएं में । किसी दूसरे व्यक्ति को इस कष्ट में डलवा दी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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