Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 168
________________ १५४ अहिसा के अछूते पहले सकता । यह नहीं हो सकता कि ज्ञ परिज्ञा तो है पर प्रत्याख्यान परिज्ञो नहीं हैं। दोनों संयुक्त होनी चाहिए । अगर सही अर्थ में जान लिया तो फिर आचरण वैसा होगा ही । हमने सही अर्थ में जान लियो कि जहर खाने वाली आदमी मरता है । कोई भी समझदार आदमी जहर नहीं खाता । जहर वहीं खाता है जिसे मरना होता है। दूसरा कोई भी जहर नहीं खोता । जहां ज्ञान सत्य हो गया, यथार्थ हो गया, वहां ज्ञान और आचरण में दूरी नहीं हो सकती । दोनों एक साथ चलेंगे । एक त्रिपदी या रत्नत्रयी है- सम्यक दर्शन, सम्यक्. ज्ञान और सम्यक् चारित्र । ये तीन रत्न हैं मोक्ष की साधना के लिए । दर्शन अगर सम्यक् है, ज्ञान सम्यक् है तो फिर आचरण सम्यक् होगा ही । पूछा गया - मोक्ष किससे होता है ? सम्यक् दर्शन से होता है ? उत्तर दिया गया - न सम्यक् दर्शन ज्ञान से मोक्ष होता है और न सम्यक् चारित्र से मिल जाते हैं तब मोक्ष होता है । जब ज्ञान और आचरण बंट जाता है, विभक्त हो जाता है तो वह ज्ञान भी सम्यक नहीं होता और वह आचरण भी सम्यक्.. नहीं होता । से होता है या सम्यक् चारित्र से मोक्ष होता है, न सम्यक मोक्ष होता है । जब तीनों ज्ञान और आचरण की दूरी मिटे यदि ज्ञान पूरा सम्यक् हो गया तो फिर आचरण गलत कैसे होगा ? आचरण गलत है तो मान लेना चाहिए कि ज्ञान-पूरा सम्यक् नहीं हुआ। आचारांग सूत्र में कहा गया जो समत्वदर्शी या सम्यग्दर्शी है वह पाप नहीं कर सकता और जो पाप करता है वह समत्वदर्शी नहीं हो सकता, सम्यग्दर्शी नहीं हो सकता । यह सिद्धान्त गहन हैं पर मनन करने योग्य है । हमारा ज्ञान तभी परिपक्व और यथार्थ ज्ञान माना जाएगा जब ज्ञान और आचरण की दूरी बिलकुल समाप्त हो जाएंगी। मैं जानता हूँ पर करता नहीं हूं,' 'जानता कुछ हूं और करता कुछ हूं, जब यह दूरी बनी रहती है, जानना भी उलटा हो जाता है और करना भी उलटा हो जाता है । यह दूरी समाप्त होने पर ही सही ज्ञान और सही आचरण संभव है । ऐसा लगता है - सम्यक् दर्शन का विकास कुछ भूखण्डों में एक प्रकार का हआ है और कुछ भूखण्डों में दूसरे प्रकार का हुआ है । , समस्या है मानवीय प्रकृति की हिन्दुस्तान में संयम पर बहुत काम हुआ है । उसका बहुत विकास हुआ है, साधना हुई है । भगवान् महावीर का पूरा जीवन-दर्शन संयम का दर्शन है । अहिंसा की परिभाषा है— सब जीवों के प्रति संयन करना । प्रत्येक बात में संयम को महत्त्व दिया गया है । पतंजलि ने यम-नियम पर बहुत महत्त्व दिया । किंतु एक समस्या हमेशा बनी रही । वह समस्या है मानवीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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