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अहिंसा के अछूते पहलु समरभूमि में लड़ा जाता है। यह बिलकुल सही बात है। अहिंसा : शारीरिक दृष्टि
___ इस बात पर शारीरिक दृष्टि से विचार करें। मस्तिष्क का एक हिस्सा है भावनात्मक तंत्र, जिसे हाईपोथेलेमस कहा जाता है, जो लिंबिक ब्रेन का एक पार्ट है। इसमें दूसरा एड्रीनल ग्लेण्ड और तीसरा पिच्यूटरी या पिनियल । इनका साझा है। इन सब का योग मिलता है तो हिंसा, लड़ाई, युद्ध-ये सब भड़क उठते हैं। इस साझा को तोड़ दिया जाए। इनमें से किसी एक पर कन्ट्रोल कर लिया जाए तो साझा टूट जाएगा और हिंसा की बात गौण बन जाएगी।
सम्राट अशोक ने कलिंग में लाखों व्यक्तियों की हत्या की थी। उसने बड़े युद्ध लड़े । हजारों सैनिक मारे गए। बाद में वह बदल गया और इतना बदला कि अशोक एक अहिंसा का दूत बन गया। शांति का संदेश-वाहक बन गया । उसने शांति का संदेश मात्र हिन्दुस्तान में ही नहीं, बाहर भी अनेक देशों में पहुंचाया। यह वही अशोक था जो एक दिन महान् लड़ाकू योद्धा और नर-संहार करने वाला था और वही अशोक शांतिप्रिय और धर्म का वाहक बन गया। यह कैसे हुआ परिवर्तन ? उस समय उसका नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र दूसरी ओर काम कर रहा था, हिंसा की ओर उन्मुख था। जब उस पर नियंत्रण हुआ तो आमूलचूल बदल गया, शांतिप्रिय हो गया। अहिंसा का पुजारी बन गया । विष निष्कासन का साधन : आसन
बदलने के अनेक कारण हैं। हिंसक से अहिंसक होने के अनेक कारण हैं। उन कारणों में योगासन भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है। इनके अभ्यास के द्वारा उस तंत्र को बदला जा सकता है जो हिंसा का तंत्र है। उसमें परिवर्तन किया जा सकता है।
योगासनों का यह कार्य है और इनके द्वारा यह हो सकता है। थाइरायडपर नियंत्रण करना है तो सर्वांगासन का प्रयोग लाभप्रद है। सर्वांगासन के द्वारा इसे संतुलित बनाया जा सकता है।
ये आसन हमारे नाड़ीतंत्र को, ग्रन्थितंत्र को और एमिनो एसिड को भी संतुलित बनाते हैं। आसन शरीर में एकत्रित होने वाले बहुत सारे विजातीय तत्त्वों को भी बाहर करते हैं। शरीर में जो विष जमा होते हैं, उन्हें निकालने का एक उपाय है उपवास तो दूसरा उपाय है योगासन । अहिंसा का सम्बन्ध है आसन से
___ अहिंसा की दृष्टि से इन योगासनों का बहुत बड़ा मूल्य है। हिंसा का संबंध है हमारे नाड़ीतंत्र से, हिंसा का संबंध है हमारे ग्रन्थितंत्र से और
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