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११. सामुदायिक जीवन और सहिष्णुता
सामुदायिक जीवन एक कठोर साधना है। जिसे साधना का अभ्यास नहीं है, वह समूह का जीवन नहीं जी सकता । अकेले में न कोई शब्द, न कोई कलह और न कोई संघर्ष । एक से दो और दो से अधिक होते ही इन सब का प्रारम्भ हो जाता है। फिर प्रारम्भ होता है तनाव, वैमनस्य, वैर और विरोध । यह सामुदायिक जीवन का एक पहल है। इसका दूसरा पहलू है-सहयोग, सौमनस्य और उपयोगिता । इनका आधारभूत तत्त्व है-सहिष्णुता । सहिष्णुता सामुदायिक जीवन का एक अलंकरण है। छोटे और बड़े सभी कहते हैं-सहन करना सीखो। पर सह-अस्तित्व, सापेक्षता और सामुदायिकता की चेतना जागे बिना सहिष्णुता फलित नहीं होती। अन्याय के प्रतिकार का निर्दोष उपाय
प्रश्न होता है-क्या अन्याय को भी सहन करें ? न्याय को सहन करना भी कठिन काम है। फिर यह परामर्श कैसे दिया जाए कि आप अन्याय को सहन करें। यह परामर्श दिया जा सकता है कि न्याय के साथ अन्याय न करें। अन्याय का प्रतिकार करना आवश्यक है । वह सहिष्णुता के साथ ही किया जा सकता है। असहिष्णुता के साथ अन्याय का प्रतिकार करना एक अन्याय को जन्म देना है। अन्याय के प्रतिकार का निर्दोष उपाय है—सहिष्णुता का प्रयोग । अन्याय को सहन करना दुर्बलता है। अन्याय के प्रति अपनी ओर से अन्याय न हो—यह विवेक है । इस विवेक चेतना के द्वारा अन्याय का सही ढंग से प्रतिकार किया जा सकता है । अन्याय का प्रतिकार एक समर्थ व्यक्ति ही कर सकता है । सहिष्णुता का अर्थ है-सामर्थ्य पूर्ण समायोजन । संवेग नियंत्रण से ही सहिष्णुता का विकास
___ सहिष्णुता का अर्थ है-शक्तिशाली होना। आदि से अंत तक शक्तिशाली वही हो सकता है, जिसका अपने संवेगों पर नियंत्रण होता है। सहिष्णुता का अर्थ है-संवेग पर नियंत्रण । इसके अभाव में किसी को कोई सहन नहीं करता । शिष्य गुरु की सीख को सहन नहीं करता और पुत्र पिता की सीख को पंसद नहीं करता। बया ने बंदर को सीख दी-वर्षा हो रही है। कांप रहे हो । एक झोंपड़ी बना लो। फिर आराम से रह सकोगे। सीख अच्छी थी। बया जैसा छोटा प्राणी बंदर को सीख दे, क्या यह ठीक है ? बंदर का पारा चढ़ गया । झोंपड़ी तो नहीं बनाई । बया के घोंसले को उजाड़ दिया।
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