Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 149
________________ १६. नैतिकता और अचेतन मन हमारी दुनिया में बहुत सारी रचनाएं जटिल होती हैं । उन सब में शरीर की रचना सबसे ज्यादा जटिल है । इसको समझने के लिए शरीरशास्त्रियों ने काफी काम किया और मानसशास्त्रियों ने भी काफी ध्यान दिया, प्राचीनकाल के दार्शनिकों ने भी इस क्षेत्र को छानने का प्रयत्न किया। अभी तक भी अज्ञात-अज्ञात बना हुआ है, रहस्य रहस्य बना हुआ है । कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि मैंने शरीर को पूरा समझ लिया है । शरीर के भीतर मन भी है, वाणी भी है, चेतना भी है और प्राणशक्ति भी है । शरीरशास्त्री शरीर के अवयवों के बारे में बहुत जानता है, किन्तु प्राणशक्ति के बारे में बिलकुल अनजान है । योग के आचार्यों ने लिखा- जो नाड़ी को नहीं जानता, वह योग का अधिकारी नहीं बन सकता । नाड़ी - विज्ञान का अर्थ है - प्राण के प्रवाह की प्रणालियों को जानना । जो प्राण के प्रवाह की प्रणालियों को नहीं जानता, वह योग का अधिकारी नहीं बन सकता । अवयव का विज्ञान, प्राण का विज्ञान, मानसिक क्रिया का विज्ञान, वचन क्रिया का विज्ञान और उससे सूक्ष्म है चेतना का विज्ञान। इतने सारे ज्ञान और विज्ञान की परम्पराओं का संगम है हमारा शरीर । इसलिए इसकी रचना बहुत जटिल है । दृष्टिकोण फ्रायड और यूंग का चेतना की दृष्टि से उसके दो रूप सामने आते हैं- व्यक्त चेतना और अव्यक्त चेतना । मनोविज्ञान में इन्हें चेतन और अचेतन कहा गया है । 'फ्रायड' ने मन के दो संभाग बतलाए - चेतन मन और अचेतन मन । 'यूंग' ने इस अवधारणा को बदल दिया। उसने कहा- मन के दो संभाग ठीक नहीं हैं, क्योंकि मन के आधार पर बहुत निर्णय नहीं लिए जा सकते। मन बहुत जल्दी बदल जाता है । उसमें छिछलापन है, स्थायित्व नहीं है, गंभीरता नहीं है । जो इतना जल्दी बदल जाता है उसके आधार पर कैसे निर्णय किया जा सकता है ? उन्होंने मन को छोड़ दिया और माइंड की उपेक्षा कर उसके स्थान पर 'साइक' शब्द का प्रयोग किया । यह अधिक दायित्व वाला है, अधिक स्थायी है। यूंग ने चित्त के दो संभाग कर दिए - चेतन और अचेतन । फ्रायड ने कहा था कि अचेतन मन में गंदगी भरी पड़ी है, कूड़ा भरा पड़ा है । वह दमित इच्छाओं का भंडार है । जो वासनाएं, इच्छाएं, आकांक्षाएं दमित हो जाती हैं, वे अचेतन में चली जाती हैं । वहां दबी पड़ी रहती हैं और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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