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सामुदायिक जीवन और सहिष्णुता
६५ व्यवहार में तभी शान्त सहवास हो सकता है, सामुदायिक जीवन स्वस्थ बन सकता है। विरोध : अविरोध
अनेकान्त ने एक सूत्र दिया वैचारिक सहिष्णुता का । हमें बहुत सारे विचार विरोधी प्रतीत होते हैं। विरोधी विचार को सहन न करना हमारी प्रकृति बन गई और इसलिए बन गई कि हम अनेकान्त का मर्म नहीं जानते। हमें सत्य की पहचान भी नहीं है। अनेकान्त का तात्पर्य है विरोध में अविरोध की खोज । कोई विरोध ऐसा नहीं है जिसके तल में अविरोध न हो । कोइ अविरोध भी ऐसा नहीं है, जिसके तल में विरोध न हो। विरोध और अविरोध-दोनों एक साथ रहते हैं। इस अवस्था में हम केवल विरोध को पकड़कर असहिष्णु क्यों बने ? नयवाद : राग-द्वेष मुक्त दृष्टिकोण
महावीर ने दो नयों का प्रतिपादन किया-द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक । एक विचार है-आत्मा कर्म का कर्ता है और उसके फल का भोक्ता है । दूसरा विचार है-आत्मा कर्म का कर्ता है पर फल का भोक्ता नहीं है। दोनों विरोधी विचार हैं और दोनों ही सत्य हैं। द्रव्याथिक नय इस दृष्टि को मान्यता देता है-जो कर्ता है, वही भोक्ता है। पर्यायाथिक नय का दृष्टिकोण इससे भिन्न है । उसके अनुसार कर्म का कर्ता अन्य होता है और उसे भोगने वाला कोई अनागत होगा।
नयवाद राग-द्वेष से मुक्त रहने का दृष्टिकोण है। जहां सत्य है, वहां राग-द्वेष के लिए अवकाश नहीं है। जहां राग-द्वेष है, वहां सत्य के लिए अवकाश नहीं है। आदमी का आकर्षण राग-द्वेष में अधिक है, लड़ाई झगड़ों में अधिक है। कभी-कभी मैं सोचता हूं-यदि वैचारिक आग्रह नहीं होता, मान्यताओं की खींचातानी नहीं होती तो दिन और रात कैसे बीतता। चौबीस घंटा का समय बहुत बड़ा समय है। नींद का समय अधिक से अधिक आठ घंटा मान लें। दो घंटे का समय शरीर-चर्या का और आठ घंटे का समय काम-काज का फिर भी छह घण्टे का समय शेष रह जाता है । यह कैसे बीतता ? राग-द्वेष की घुड़दौड़ इतनी आकर्षक है कि उसे देखते-देखते पलभर में समय बीत जाता है । आकर्षण इसके साथ जुड़ा हुआ है, फिर सहिष्णुता की बात कैसे आगे बढ़े ? सहिष्णुता के सूत्र
___ असहिष्णुता जिन्हें सता रही है, मानसिक तनाव बढ़ रहा है, भावनाएं उदिप्त हो रही हैं। वे लोग शांति की खोज में निकल पड़ते हैं। उनके लिए सहिष्णुता की साधना एक समाधान है। सहिष्णुता के लिए दृष्टिकोण को
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