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१३. भावात्मक स्वास्थ्य
दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं। कुछ लोग सदा प्रसन्न रहते हैं । कठिन परिस्थिति आने पर भी उनमें विषाद, खिन्नता और उदासी नहीं आती। वे अपनी प्रसन्नता को नहीं खोते । कुछ लोग ऐसे भी होते है कि २४ घंटे तक विषाद उनसे छूटता ही नहीं है । सुख का अवसर हो तो भी उनका चेहरा मुरझाया हुआ रहता है। उदासी और खिन्नता टपकती ही रहती है । ऐसा क्यों होता है ? क्या परिस्थिति प्रभावित करती है ? परिस्थिति यदि प्रभावित करती तो प्रसन्न रहने वाले को भी प्रभावित करती पर उसे कठिन परिस्थिति भी प्रभावित नहीं कर पाती । कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनके दुःख सदा उद्दीप्त रहता है। कभी बात कर देख लो दुःख तैयार है, हीन भावना तैयार है, उदासी तैयार है, निराशा तैयार है। जितने निषेधात्मक और नकारात्मक भाव हैं, वे सब उनके पास बने के बने रहते हैं । इसका कारण है--स्वभाव ।
किस व्यक्ति ने किस प्रकार के स्वभाव का निर्माण किया है। एक व्यक्ति ने प्रसन्न रहने के स्वभाव का निर्माण किया है तो दूसरे व्यक्ति ने खिन्न और दुःखी रहने के स्वभाव का निर्माण किया है । स्वभाव का निर्माण संवेगों के आधार पर होता है। जो व्यक्ति जिस प्रकार के संवेग में ज्यादा जीता है, उसका वैसा ही स्वभाव निर्मित हो जाता है । स्वभाव और संवेग
बहुत गहरा संबंध है संवेग और स्वभाव में। संवेग सूचक है स्वभाव का। स्वभाव बतला देता है कि अमुक व्यक्ति अमुक प्रकार के संवेग में जी रहा है । पहले संवेग को समझना जरूरी है। भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए संवेग की पहचान और भाव की पहचान जरूरी है। मनोविज्ञान में चवदह मूल मनोवृत्तियों को माना गया है, चवदह ही संवेग माने गए हैं। साहित्य में संवेगों की चर्चा आती है— स्थाई मनोभाव और संचारी मनोभाव । जो स्थाई भाव हैं, संचारी भाव हैं, वे संवेग हैं। कर्मशास्त्र में या अध्यात्म शास्त्र में जितनी कर्म की प्रकृतियां हैं, उतने ही संवेग बन जाते हैं।
उल्लास एक संवेग है। दुःख का भाव एक संवेग है। जो व्यक्ति उल्लास के संवेग में जीता है उसे दुःख कम छूता है या नहीं छूता। जो व्यक्ति दुःखभाव के संवेग में ज्यादा जीता है, बिना बुलाए उस के दुःख आ टपकता है, बुलाने की आवश्यकता ही नहीं होती, पास में ही रहता है।
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