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अहिंसा के अछूते पहलु वचन निरपेक्ष नहीं है, इसका अर्थ है--प्रत्येक वचन सत्यांश का वाचक है, पूर्ण सत्य का वाचक नहीं है। प्रत्येक व्यवहार सापेक्ष है, इसका अर्थ हैदेश, काल के अनुसार व्यवहार बदलता रहता है। यह सापेक्षता की समझ विकसित होने पर विचार में अनाग्रह का विकास होता है, वचन विवाद से मुक्त हो जाता है और व्यवहार में बन जाता है प्रवृत्ति, निवृत्ति और उपेक्षा का संतुलन । इससे एक साधना का सूत्र हाथ लगता है। हम प्रवृत्ति करने में स्वतंत्र हैं। अपेक्षित नई आदत का निर्माण कर सकते हैं। हम निवृत्ति करने में भी स्वतंत्र हैं । अवांछनीय पुरानी आदत को छोड़ सकते हैं । उपेक्षणीय क्षणों का मूल्यांकन करने में भी हम स्वतन्त्र हैं। यह साधना का सूत्र नयवाद की बहुत बड़ी देन है।
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