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सामाजिक जीवन की समस्या और सह-अस्तित्व वह प्रविष्ट ही नहीं हो सकता। उपयोगिता को ही इतना अभेद मान लिया गया कि कहीं अभेद रहा ही नहीं।
इस सह-अस्तित्व के सिद्धांत को प्रतिष्ठित करने के लिए सतत प्रशिक्षण की जरूरत है। प्रारंभ से ही एक छोटे बच्चे को प्रशिक्षण दिया जाए कि साथ में रहना है, साथ में जीना है, साथ में पढ़ना है और श्वास भी साथ में लेना है । इस बात का गहरा प्रशिक्षण हो तो सामाजिक जीवन की जो सबसे बड़ी समस्या है, जो भेदात्मक और विरोधात्मक समस्या है, उसका समाधान खोजा जा सकता है। समाज का मूल आधार : सह-अस्तित्व
अहिंसा का एक दूसरा नाम है-समृद्धि । समृद्धि नाम धन का भी है। अध्यात्म जगत् में समृद्धि नाम है अहिंसा का । समाज के दो रूप बनते हैंस्वस्थ समाज और रुग्ण समाज। उसका दूसरा संदर्भ है-समृद्ध समाज और दरिद्र समाज । वर्तमान की समस्याओं के संदर्भ में समाज की स्थिति का निरीक्षण करने पर यह स्पष्ट प्रतिभासित होता है कि वर्तमान समाज स्वस्थ समाज नहीं है, रुग्ण समाज है। वर्तमान समाज समृद्ध नहीं है, दरिद्र है। समाज का मूल आधार है-सह-अस्तित्व। जिस समाज में उसका विकास नहीं होता, उसे स्वस्थ और समृद्ध समाज नहीं कहा जा सकता। स्वास्थ्य के लिए कितनी ही योजनाएं चलें, कितना ही औद्योगिक विकास हो जाए, कितना ही व्यावसायिक विकास हो जाए और कितनी ही संपदा बढ़ जाए किन्तु जब तक सह-अस्तित्व की प्रतिष्ठा नहीं है, समाज समृद्ध नहीं हो सकता। समस्या है परस्परता का अभाव
__ आचार्य उमास्वाति का एक सूक्त है-"परस्परोपग्रहो जीवानाम् ।" सह-अस्तित्व के संदर्भ में यह सूत्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । प्रश्न था-जीवों का उपकार क्या है ? उत्तर दिया गया-परस्परता की अनुभूति । जहां स्वामीसेवक और मालिक-नौकर का भेद आता है वहां झगड़ा होता है। जहां गुरुशिष्य का भेद आएगा वहां भी झगड़ा होगा। जहां अधिकारी और कर्मचारी का भेद है, वहां भी झगड़ा होता है। झगड़ा होना एक समस्या है। इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करते हुए कहा गया—यह स्तर का भेद हो सकता है किन्तु यदि उसके पीछे परस्परता का सूत्र होता है तो भेद समस्या नहीं बनता । स्वामी काम लेना चाहता है और नौकर काम करना नहीं चाहता। यह समस्या परस्परता के अभाव में पनपती है। नौकर चाहता है, काम कम से कम करूं और पैसा अधिक से अधिक लू । मालिक चाहता है, अधिक से अधिक काम लू और कम से कम पैसा दूं। उनमें परस्परता की अनुभूति नहीं है । औद्योगिक जगत् में, व्यावसायिक जगत् में, शिक्षा के जगत्
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