________________
आर्थिक जीवन और सापेक्षता
८१
मुझे लगता है -- वर्तमान आर्थिक समस्या का सापेक्षता एक समाधान बन सकता है । सापेक्षता का प्रयोग दार्शनिक क्षेत्र में बहुत हुआ है । जैन आचार्यों दार्शनिक विरोधों को मिटाने में इस सिद्धांत का व्यापक उपयोग किया । सामान्य बात पूछी गई - यह अंगुली छोटी है या बड़ी । इसका सापेक्ष उत्तर दिया गया - अंगुली छोटी भी है, बड़ी भी है । तीसरी बड़ी अंगुली की अपेक्षा से यह छोटी है । पहली या चौथी अंगुली की अपेक्षा से यह बड़ी है । सापेक्षता को समझाने के लिए ऐसे अनेक निदर्शन दिए गए हैं। प्रश्न किया गया — यह रेखा छोटी है या बड़ी । इसका कोई उत्तर नहीं दिया जा सकता । यदि रेखा के पास एक छोटी रेखा खींचे तो कहा जा सकता है कि रेखा बड़ी है । यदि बड़ी रेखा खींच दी जाए तो कहा जा सकता है कि यह रेखा छोटी है । अपेक्षाकृत दूरी और अपेक्षाकृत निकटता । सापेक्षता के द्वारा ही सम्यक् समाधान संभव बन सकता है ।
हाथ में
पानी था उसमें । अब क्या
महर्षि कुत्स के एक कमण्डलु था । उन्होंने शिष्य से पूछाबताओ, यह खाली है या भरा हुआ है । आधा उत्तर दे । शिष्य उलझन में पड़ गया । गुरु से किया । महर्षि ने कहा - खाली भी है, भरा हुआ भी है । आधा पानी है, इसलिए खाली नहीं है । कंमडलु पूरा भरा हुआ नहीं है, इसलिए खाली भी है । यह है सापेक्षता ।
ही
रहस्य बताने का अनुरोध
सापेक्षवाद : नया संदर्भ
जैन दर्शन ने सापेक्षता के सूत्र से अनेक समस्याओं को सुलझाया है । दूसरे दर्शनों ने भी यत्किंचित् इस सिद्धांत का उपयोग किया है । इस युग महान् वैज्ञानिक आइंस्टीन ने गणित की अनेक समस्याओं का अपेक्षा के द्वारा हल प्रस्तुत किया और एक नया अपेक्षावाद विश्व के सामने अभिव्यक्त किया । अनेकान्तवाद का जो अपेक्षावाद था उसे वैज्ञानिक जगत् में एक नया संदर्भ मिल गया । वर्तमान आर्थिक समस्याओं के संदर्भ में सापेक्षवाद का प्रयोग किया जाए तो उसे एक और नया आयाम मिल जाएगा ।
अध्यात्म की सापेक्षता
―
सापेक्षवाद के दो पहलु हैं- अध्यात्म सापेक्ष और समाज सापेक्ष भगवती सूत्र में एक प्रसंग है - एक मुनि अपने लिए बनाया हुआ भोजन नहीं करता । इसका कारण बतलाते हुए सूत्रकार कहते हैं - वह मुनि पृथ्वीकाय की अपेक्षा रखता है, अप्काय के जीवों की अपेक्षा रखता है । तेजस्काय के जीवों की अपेक्षा रखता है । वायुकाय के जीवों की अपेक्षा रखता है । वनस्पति काय के जीवों की अपेक्षा रखता है । सकाय के जीवों की अपेक्षा रखता है । इसलिए वह अपने लिए बना हुआ भोजन नहीं करता ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org