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अहिंसा के अछूते पहलु
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के अनेक कारण बतलाए गए हैं। उनमें एक है - आर्थिक असंतुलन । आर्थिक क्षेत्र में बढ़ती हुई स्पर्धा ने अपराध को पनपने का अवसर दिया है। एक आदमी दूसरे से आगे बढना चाहता है । अर्थ की इस स्पर्धा से अपराध को पल्लवन मिला है । एक बड़े उद्योगपति से व्यक्तिगत बातचीत में मैंने पूछातुमने इतना अत्याचार क्यों किया ? इतने अतिक्रमण क्यों किए ? इतने जघन्य काम क्यों किए ? इतने अपराध क्यों किए ? उसने बहुत साफ-साफ कहाजब मैं उद्योग में सफल होता गया तो मेरे मन में एक भावना जागी । मैंने निर्णय किया -- मुझे हिन्दुस्तान का प्रथम नंबर का उद्योगपति बनना है । इस भावना ने मुझसे ये सारे अपराध करवाए ।
आर्थिक प्रतियोगिता ने अपराध को जन्म दिया है और इस आर्थिक प्रतियोगिता के कारण ही नैतिक-अनैतिक जैसी अवधारणाएं ही समाप्त हो गई हैं । कोई भी आदमी अनैतिक आचरण करने में सकुचाता नहीं । उसके दिमाग में केवल यही बात घूमती है कि मैं सबको पीछे छोड़कर आगे चला जाऊं ।
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निर्धनता भी अपराध का कारण
निर्धनता भी अपराध का एक कारण है । गरीबी के कारण भी आदमी अपराध करता है । सारे निर्धन या गरीब आदमी अपराध नहीं करते । निर्धन आदमी बड़े ईमानदार और नैतिक होते हैं किन्तु अपराध का एक कारण निर्धनता या गरीबी भी है, इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता । अपराध का एक कारण बेरोजगारी है । रोजी-रोटी का कोई साधन उपलब्ध नहीं होता है तो व्यक्ति अपराध में चला जाता है ।
एक चोर से पूछा गया - तुम चोरी क्यों करते हो ? उसने कहाचोरी करना मेरी आदत नहीं है । मैं चोरी करना भी नहीं चाहता । किन्तु कोई रोजगार का साधन नहीं है, कोई काम-धंधा नहीं मिल रहा है । इस स्थिति में मैं क्या करूं ? बाल-बच्चों का भरण-पोषण कैसे हो ? यह बेरोजगारी मुझसे चोरी करवाती है ।
अपराध : बिना श्रम किए पाने की मनोवृत्ति
अपराध का एक कारण है – लालच । मनुष्य में लालच है, बहुत पाने की इच्छा है । वह श्रम कम करना चाहता है, धन अधिक पाना चाहता है । इस मनोवृत्ति से अपराध को बढावा मिलता है । अपराध यानी बिना श्रम किए पैसा पाने की मनोवृत्ति । दुकान में बैठकर कमाने में काफी श्रम करना पड़ता है ! अनेक व्यक्ति मिलकर अपना गिरोह बना लेते हैं, डकैती करते हैं, TET डालते हैं । जो धन उन्हें साल भर के सतत परिश्रम से मिलता है, उसे वे एक ही रात में पाने की कोशिश करते हैं। या ऐसी गुप्त सूचनाएं एकत्र
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