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अहिंसा के अछूते पहलु
मैं कितनी मूर्ख हूं। मैंने मात्र साड़ी के लिए ही क्यों कहा, मैंने जेवर के लिए क्यों नहीं कहा ? और मुझे अपनी ही बात पर गुस्सा और खीज आने लग जाती है ।
जब इच्छा असीम बनती है, व्यक्ति समस्या से घिर जाता है । यह इच्छा न जाने कितनी भावनाएं, कितनी वृत्तियां और कितनी समस्याएं पैदा करती है ।
मार्क्सवाद की उत्पत्ति का मूल बीज
आर्थिक जीवन का दूसरा पहलू है - आवश्यकता । जीवन के आथ आवश्यकता जुड़ी हुई है । कोई भी व्यक्ति आवश्यकता विहीन जीवन नहीं जी सकता । रोटी की आवश्यकता, पानी की आवश्यकता, कपड़ों की आवश्यकता, मकान की आवश्यकता, दवा की आवश्यकता । कोई अन्त नहीं आवश्यकताओं का । उसकी तालिका इतनी लम्बी है कि आज तक कोई भी उस तालिका को बना नहीं पाया और शायद वह बनाई भी नहीं जा सकती ।
जब आदमी इच्छा से संचालित होता है तब कृत्रिम आवश्यकताएं भी बहुत पैदा हो जाती हैं । मार्क्सवाद - आज बहुत प्रसिद्ध राजनीतिक प्रणाली बन गया है । उसकी उत्पत्ति के मूल में आवश्यकता का बीज था । मार्क्स ने देखा - उसका लड़का भूख से तड़पते हुए प्राण छोड़ रहा है। उसके मन में प्रश्न उठा- - भूख क्या है ? क्या इसी के द्वारा सब कुछ संचालित हो रहा है ? इस - प्रश्न की खोज में एक नया अर्थशास्त्र प्रस्फुटित हो गया । मार्क्सवादराजनीति की नई साम्यवादी प्रणाली विकसित हो गई। कोई भी व्यक्ति आवश्यकता से मुक्त नहीं हो सकता । कोई भी शरीरधारी प्राणी आवश्यकता विहीन नहीं हो सकता ।
उपार्जन और स्वामित्व
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आर्थिक जीवन का तीसरा पहलू है – उपार्जनवृत्ति । मनोविज्ञान ने कुछ मौलिक मनोवृत्तियां मानी हैं । उनमें एक है— उपार्जनवृत्ति । मनुष्य में उपार्जन करने की वृत्ति होती है । मनुष्य में ही नहीं, प्रत्येक प्राणी में यह वृत्ति उपलब्ध है । वह प्रकृति से ही उपार्जन करता है ।
इस मौलिक मनोवृत्ति का संवेग है - स्वामित्व की भावना, अधिकार की भावना । प्राणी केवल उपार्जन ही नहीं करता किन्तु उस पर अपना स्वामित्व जताता है, अधिकार करता है । आर्थिक जीवन का चौथा पहलू हैस्वामित्व की भावना |
भोग : परिग्रह का फल
आर्थिक जीवन का पाचवां पहलू है - भोग । आर्थिक जीवन के साथ भोग की बात जुड़ी हुई है । प्रश्नव्याकरणसूत्र में एक रूपक के माध्यम से
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