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अहिंसा और अभय कि आंख से आंख भी नहीं मिलाते । मूल्य है नींव के पत्थर का
आचार्यश्री मेवाड़ की यात्रा में एक गांव में गए। घाटियों में बसा हुआ गांव । वहां देखा, भाई-भाई में अनबन चल रही था। आचार्यश्री को पता चला। उन्होंने बड़े भाई से कहा-तुम इस वैर-विरोध को मिटा दो। उसने कहा, आचार्यवर ! मैं आपका श्रावक हूं और आपका आज्ञाकारी हूं। आप यह कहें कि धूप में खड़े सूख जाओ तो सूख जाऊंगा, पर भाई से वैर नहीं मिटाऊंगा। आप कल्पना कर सकते हैं कि कितना परस्पर में वैर-विरोध होता है ! कैसी परिस्थिति होती है ! हम सबसे पहले यदि अहिंसा की दिशा में कुछ सोचना चाहते हैं और अपने जीवन में अहिंसा का विकास करना चाहते हैं तो अपने परिवार में अहिंसा का प्रयोग करना होगा।
जहां परिवार है, पांच-दस आदमी साथ में रहते हैं, वहां हिंसा के प्रसंग आने स्वाभाविक हैं। दो आदमी हुए और हिंसा का प्रसंग आ जाता है। दो होने का मतलब ही है हिंसा का अवसर । विचार भेद, रुचि का भेद और चिंतन का भेद होने पर हिंसा के प्रसंग आ सकते हैं। पहले स्वयं पर प्रयोग करें। यह प्रयोग सफल हो जाता है तो फिर प्रयोग आगे बढ़े पडोसियों में। पड़ोसियों के साथ अहिंसा का प्रयोग करें। अहिंसा को जीवन में व्यापक बनाएं। फिर राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्र की बात आती है। हम लोग बड़े विचित्र हैं। न अपने प्रति अहिंसा का प्रयोग और न अपने परिवार के प्रति अहिंसा का प्रयोग और न गांव में अहिंसा का प्रयोग, सीधी ही विश्व शांति और अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा की बात करते हैं। छोटे काम के प्रति हमारा भरोसा ही नहीं है । बहुत बड़ा काम करना चाहते हैं। ऐसा कभी हुआ नहीं और कभी होगा नहीं। जो लोग ऐसा करते हैं, छोटे क्षेत्र में अहिंसा का प्रयोग किए बिना बड़ी-बड़ी बात करते हैं और सीधी विश्व शान्ति की बात करते हैं, वे कभी अपने मिशन में सफल नहीं हो सकते ।
हम प्रयोग की दिशा में एक क्रम से चलें। अहिंसा के प्रयोग क्रमशः करते-करते हम आगे बढ़ें। बड़ी बातों में न उलझें, बहुत परतों में न उलझें। छोटे-छोटे प्रयोग करते-करते हम बड़ी दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। इसलिए छोटों का मूल्यांकन करें। छोटे का बहुत बड़ा मूल्य होता है। नींव के पत्थर का जितना मूल्य है उतना खंभे का और दीवारों का मूल्य नहीं है। मूल आधार तो वे ही बनते हैं। उस आधार का मूल्यांकन करें। मूर्छा के चक्र को तोड़े
हम अहिंसक समाज रचना की बात करते हैं, स्वस्थ समाज रचना की बात करते हैं, हम वैसा समाज चाहते हैं जिसमें शान्ति, स्वस्थता, अभय हो,
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