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सामाजिक जीवन की समस्या और सह-अस्तित्व
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होगा, वह विरोधी ही होगा, विरोधी युगल ही होगा। अज्ञान के कारण हम इस सचाई तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। बहुत बार मनुष्य अज्ञान में होता है और वह मूल स्थिति को समझ नहीं पाता है।
किसान अपने बैलों को लिए हुआ जा रहा था। रास्ते में पुजारी ने घंटी बजाई । बैल भड़क उठे । किसान ने कहा-अरे ! देखता नहीं, मेरे बैल भड़क गए । पुजारी ने कहा-आरती उतार रहा हूं। किसान बोला-अब आरती उतार रहे हो, पहले ऊपर चढ़ाई ही क्यों ?
अज्ञानता के कारण मनुष्य इस सचाई को पहचान नहीं पाता कि आरती कभी चढ़ाई नहीं जाती, वह उतारी ही जाती है । एक शाश्वत युगल : विरोध और अविरोध
हमारे साथ ऐसा ही कुछ हो रहा है । हम सचाई को पकड़ नहीं पा रहे हैं । यदि हम यह माने की दुनिया में जितना विरोध है, वह मात्र विरोध ही है तो विरोध को मिटाने का कोई उपाय हमारे पासन ही है । अनेकान्तवाद का स्वीकार है--जहां-जहां विरोध है वहां-वहां अविरोध भी समाया हुआ है । विरोध और अविरोध को कभी कम नहीं किया जा सकता। यह ऐसा जोड़ा नहीं है, जो कभी कट जाता है, कभी रह जाता है। यह शाश्वत जोड़ा है, शाश्वत युगल है । न कभी पति मरता है, न कभी पत्नी मरती है
और न ही कभी तलाक होता है। दोनों अमर और शाश्वत हैं । न कभी विरोध समाप्त होता है, न कभी अदिरोध समाप्त होता है। दोनों निरंतर साथ-साथ बने रहते हैं । इस स्थिति में ही सह-अस्तित्व फलित होता है । एक साथ रहना और एक साथ जीना-इसका अर्थ है, दो विरोधी एक साथ रह सकते हैं। पानी : ठंडा या गर्म
प्रत्येक वस्तु में दो विरोधी धर्मों का सहावस्थान है। कोई भी चीज ऐसी नहीं है, जिसमें आर्द्रता न हो, स्निग्धता न हो। आर्द्रता और स्निग्धता, ये सब वस्तु के धर्म हैं । ऐसा कोई पदार्थ नहीं है, जिस में उष्णता या ताप न हो । पानी को उबाला गया, गर्म कर लिया गया। उसे क्या कहें ? वह पानी है या आग? पानी का लक्षण है--ठंडा होना; पर यह तो उबल रहा है । इसे पानी नहीं कहा जा सकता । आग का काम है जलना तो क्या इसे आग कहा जाए ? आग भी नहीं कहा जा सकता। आग पर पानी डालें तो यह पानी गर्म होकर भी उसे बुझा देगा । आखिर इसे क्या कहा जाए ? इस प्रश्न के मंथन से निष्कर्ष निकला-जो पानी उबाल दिया गया, वह पानी भी है और आग भी है, दोनों है । वह पानी है क्योंकि वह आग को बुझा सकता है। वह आग है क्योंकि उसका शीतलता का धर्म गौण हो गया, तिरोहित हो
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