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अहिंसा और अभय
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जाओ तो यह सूई तुम लाकर मुझे दे देना । मुझे यह सूई बहुत प्यारी है। सेठ ने कहा-आप कितने भोले हैं। मरने के बाद तो शरीर भी साथ नहीं जाता तो सूई कैसे साथ चलेगी? नहीं जा सकती। संन्यासी ने कहा, क्या इस बात को जानते हो तुम ? उसने कहा, हां महाराज ! मैं इस सचाई को जानता हूं। संन्यासी ने कहा-फिर तुममें इतनी मूर्छा क्यों ?
चाहे किसी को कितना ही समझा दें, धन के प्रति, पदार्थ के प्रति और अपने परिवार के प्रति इतनी गहरी मूर्छा है कि वह मूर्छा ही सारा भय पैदा कर रही है। भय का मूल स्रोत है मूर्छा। वह मृत्यु का भय भी पैदा करती है । यह माना जाता है कि आदमी मौत से डरता है पर वास्तव में आदमी मौत से नहीं डरता। यह आरोपित भय है। यह भय इसलिए होता है कि वह जानता है, मरने के बाद सब कुछ छूट जाएगा। इसलिए मौत से भी डर हो गया।
मूर्छा का भय और मूर्छा ने पैदा कर दिया मृत्यु का भय और मृत्यु ने पैदा कर दिए हजारों भय । इतने भय पैदा कर दिये कि पग-पग पर आदमी डरता है। थोड़ी सी बुखार होती है, आदमी डर जाता है। बीमारी आती है, आदमी डर जाता है। हमेशा यह बना रहता है कि कहीं यह शरीर छूट न जाए । शरीर के प्रति भी इतनी गहरी मूर्छा। सबसे सघन मूर्छा हमारी शरीर के प्रति है। अभय का महत्त्वपूर्ण सूत्र
इस मूर्छा को तोड़ने के लिए कायोत्सर्ग एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। कायोत्सर्ग का अर्थ है-शरीर का त्याग, शरीर को छोड़ देना, जीते जी शरीर को छोड़ देना । मरने के बाद शरीर छूटता है। छूटना अलग बात है और छोड़ देना बिलकुल अलग बात है। शरीर को छोड़ देना, काया का उत्सर्ग कर देना, शरीर को त्यागना-यह महत्त्वपूर्ण बात है। जब हम शरीर की सारी प्रवृत्तियों को छोड़ते हैं, बिलकुल स्थिर, निश्चल और शिथिल बन जाते हैं, प्रवृत्ति से मुक्त होते हैं तो हमें एक प्रकार की मृत्यु का अनुभव होता है। एक प्रकार की मृत्यु है यह । आदमी नींद लेता है वह भी एक प्रकार की मृत्यु है । कायोत्सर्ग करता है वह भी एक प्रकार की मृत्यु है । जो व्यक्ति मृत्यु का अभ्यास कर लेता है, उसका मौत का भय निकल जाता है। उसे मृत्यु का साक्षात्कार हो जाता है। साक्षात्कार होने पर मन से वह भय निकल जाता है । अभय होने का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र है कायोत्सर्ग । अभय हुए बिना आदमी का जीवन नीरस बन जाता है। भय निरन्तर तनाव पैदा करता रहता है। वह निरन्तर सताता रहता है। चारों ओर भय ही भय दीखता है। बड़ा कठिन है भय के वातारण में अभय रहना । वातावरण की बात भी
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