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अहिंसक व्यक्तित्व का निर्माण
के प्रशिक्षण का क्रम बन गया। एक प्रयोगात्मक पाठ बन गया। चालीस मिनट का यह प्रयोग अहिंसा के प्रशिक्षण का पहला प्रयोग बन जाएगा। निर्विचार अवस्था, निषेधात्मक भावों को बाहर निकालने का उपक्रम, विधायक भावों को स्थापित करने का प्रयत्न और विधायक भावों के स्थिरीकरण के लिए उनकी अनुप्रेक्षा या पुनरावर्तन-यह क्रम चलता है तो अहिंसक व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है। इसके बिना केवल उपदेश, अहिंसा कल्याणकारी है, अहिंसा के बिना समाज गड़बड़ा रहा है, यह कोरा उपदेश, कोरा चिन्तन और कोरी चर्चा सारहीन ही होगी। एक जागरूक प्रयत्न की आवश्यकता है। दो चेहरे हैं हमारे
सुकरात जितना बड़ा तत्ववेत्ता था उतना ही कुरूप था। उसका चेहरा "भद्दा था फिर भी वह सामने शीशा रखता। बार-बार अपना चेहरा देखता। एक बार वह शीशे के सामने बैठा था। एक आगंतुक व्यक्ति आया। उसने देखा । उससे रहा नहीं गया। कोई सुन्दर आदमी सामने शीशा रखकर मुंह देखे तो समझ में आने वाली बात है कि वह अपने सौंदर्य को देख रहा है। सुकरात का इतना भद्दा चेहरा और बार-बार शीशा देखता है। उसे हंसी आ गई । सुकरात बहुत बड़ा तत्त्वज्ञानी था, तत्त्ववेत्ता था। बात छिपी नहीं रही। उसने कहा, तुम हंसे हो। तुम्हारे मन में यह विचार आया कि मैं शीशा क्यों देखता हूं? उसने सोचा, मेरी बात का इस महान् दार्शनिक को पता चल गया । सुकरात बोले, तुम नहीं समझे । मुझे शीशा देखना बहुत जरूरी है । मैं देखता हूं-मेरा यह चेहरा बहुत भद्दा है पर इस भद्देपन के पीछे मेरा जो गुणात्मक सौन्दर्य है वह भद्दा न बन जाए। इसलिए शीशे में मैं रोज झांकता रहता हूं। प्रगति का कारण
हमारे दो चेहरे हैं। एक तो यह चमड़ी वाला चेहरा और दूसरा गुणात्मक चेहरा। कल ही मैंने एक लेख पढ़ा। उसने मुझे बहुत आकर्षित किया। लेख का विषय था- जापान आज सारे संसार पर व्यावसायिक और औद्योगिक क्षेत्र में हावी हो रहा है। इसका राज क्या है ? लेख में बातें जो थीं, सचमुच चौंकाने वाली बातें थीं। जिस दिशा में समाज का प्रशिक्षण होता है, आदमी उसी दिशा में प्रगतिशील बन जाता है। जापान में गुणवत्ता पर बहुत बल दिया जाता है उद्योग के क्षेत्र में। वहां प्रशिक्षण के कोर्स वर्ष भर चलते रहते हैं। उसमें विद्यार्थी भी आते हैं, मैनेजर भी आते हैं, बड़े-बड़े अधिकारी भी आते हैं और उस कोर्स को दोहराते रहते हैं। बड़े-बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों के बड़े-बड़े संस्थान बने हुए हैं। हर उद्योगपति,
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