________________
अहिंसा और आसन
हिंसा का संबंध है अम्लों से। इन सबसे संबंध है । हिंसा पर नियंत्रण करने में आसनों की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इन्हें पहचानना है । इन्हें जानना है । बहुत बार पहचानने में गलती हो जाती है, आदमी जानबूझकर पहचानने में गलती कर देता है।
छोटी सी घटना है। एक युवती खड़ी थी बस स्टेण्ड पर । वहां एक आदमी आया और बोला, बहिनजी, ! मैंने आपको कहीं देखा तो है ? वह उसकी बात को ताड़ गई। वह समझ गई कि ऐसा कहने के पीछे इसकी कौन-सी भावना काम कर रही है। उसने कहा, आप ठीक कह रहे हैं। मैं पागलखाने में नर्स हूं। वह युवक बेचारा सकपका गया।
पहचानने में बड़ी भूल हो जाती है। आदमी पहचान नहीं कर सकता । अपने भावावेश के कारण मिथ्या और गलत पहचान कर लेता है। हमें उन भ्रान्तियों से बचना है। गलत पहचान से बचना है और यथार्थ को समझना है। यथार्थ की दृष्टि से चितन करें तो योगासनों का ठीक मूल्यांकन होगा। प्रेक्षा-ध्यान के साथ योगासन अनिवार्यतया जुड़े हुए हैं और हम इन्हें अनेक दृष्टियों से आवश्यक मानते हैं । कोई व्यक्ति ध्यान करता है। ध्यान का पाचनतंत्र पर असर आता है। पाचनतंत्र थोड़ा कमजोर बनता है। यदि योगासन न करें तो पाचनतंत्र और अधिक बिगड़ जाता है। ध्यान के साथ योगासन करना अत्यन्त आवश्यक है । उससे पाचनतंत्र बिलकुल स्वस्थ बना रहता है।
शारीरिक दृष्टि से, मानसिक दृष्टि से और भावनात्मक दृष्टि से आसनों का अपना महत्त्व है। इसीलिए प्रेक्षा-ध्यान का वह एक अनिवार्य अंग बना हुआ है। इन योगासनों के द्वारा किस प्रकार वृत्ति को और भावनाओं को बदला जा सकता है, यह एक गंभीर अध्ययन का विषय है । उतनी सूक्ष्मता में जाएं या न जाएं, मोटी-मोटी बात समझ में आ जाए तो वृत्ति-परिवर्तन की दिशा में, अहिंसा के विकास की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org