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हिंसा और आहार
गात को खोजने में बड़ी कठिनाई आती है, बड़ा श्रम करना होता है।
एक गंजा आदमी हजामत कराने के लिए नाई की दूकान पर गया। उसने नाई से पूछा-हजामत के क्या लोगे ? नाई बोला-तीन रुपये । उसने कहा-सबसे दो-दो रुपये ले रहे हो, फिर मेरे से तीन क्यों ? नाई ने कहाहजामत के तो दो ही रुपये लूंगा। पर एक रुपया तुम्हारे बाल ढूंढने का लगेगा। गंजे सिर पर बालों को खोजना भी एक समस्या है। उसमें श्रम करना पड़ता है।
हमें सम्बन्ध की खोज करनी है कि आहार में और हिंसा में तथा आहार में और अहिंसा में क्या सम्बन्ध है ? यह सम्बन्ध की खोज महत्त्वपूर्ण पहलू है। भोजन से जुड़ी समस्याएं
आदमी जो भोजन करता है, उससे शरीर में अनेक प्रकार के रसायन बनते हैं । भोजन के द्वारा मस्तिष्क में न्यूरो-ट्रांसमीटर बनते हैं, जो तंत्र के संप्रेषक होते हैं । इनके द्वारा मस्तिष्क शरीर का संचालन करता है । वैज्ञानिकों ने चालीस प्रकार के न्यूरो-ट्रांसमीटरों का पता लगा लिया है। ये सारे भोजन से बनते हैं।
भोजन के द्वारा एमिनो एसिड आदि अनेक प्रकार के एसिड बनते हैं। यूरिक एसिड जहर है । वह भी भोजन से बनता है। हमारी प्रवृत्ति और भोजन के द्वारा अनेक विषैले तत्त्व शरीर में बनते हैं। अतः इस बात को जानना होगा कि किस प्रकार का भोजन करने से क्या बनता है ? जिस भोजन से विष अधिक बनता है, वैसा भोजन करने पर मानसिक समस्याएं पैदा होती हैं, भावनात्मक उलझनें बढ़ती हैं, हिंसा की वृत्ति बढ़ती है। भोजन : दो पहलु
प्राचीन काल में भोजन के इस पहल पर बहुत विचार किया गया कि क्या खाने से क्या होता है । आज के वैज्ञानिक ने इस पहल के साथ-साथ दूसरे पहल पर भी बहुत ध्यान दिया है कि किस प्रकार के भोजन की पूर्ति न होने पर क्या होता है ? दोनों पहलु हमारे सामने हैं-(१) किस वस्तु के खाने से क्या होता है ? (२) किस वस्तु की पूर्ति न होने पर क्या होता है ? एक प्राचीन पहलू है और एक नया पहलू है ।
एक आदमी बहुत चिड़चिड़ा है। चिड़चिड़ा क्यों है. इसकी खोज करने पर पता लगता है कि उसमें विटामिन “ए” की कमी है। प्रति सौ क्यूबिक सेंटीमीटर में चीनी की मात्रा १० से ११० मिलिग्राम होनी चाहिए। इतनी आवश्यक होती है । जिसमें इससे कम चीनी होती है, उसके शरीर पर असर आ जाता है । यदि अधिक कम होती है तो भावात्मक असर आता है।
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