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अहिंसा और आहार
चिन्तन की दयनीय स्थिति
आज चितन के क्षेत्र में एक दयनीय स्थिति बनी हई है। आज सब कुछ शरीर की दृष्टि से सोचा जाता है। उसके बाद नंबर आता है मन का। मन के विषय में बहुत कम सोचा जाता हैं, किन्तु भावनात्मक दृष्टि से सोचना तो नहीं के बराबर है।
__ आज के विचार का मुख्य पहल है-शरीर, फिर मन और फिर भावना। इसे बदलना जरूरी है । विचार का मुख्य पहलू होना चाहिए भावना, फिर मन और फिर शरीर । जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला तत्त्व है भावना। जैसा भाव वैसा मन और जैसा मन वैसा शरीर । अनेक विकार भाव के कारण उत्पन्न होते हैं । अनेक बीमारियां भाव के कारण होती हैं । भाव मन को प्रभावित करता है, मन बीमार हो जाता है। जब मन बीमार हो जाता है, शरीर बीमार बन जाता है। आहार का परामीटर क्या है।
तीन शब्द हैं-आधि, व्याधि और उपाधि । व्याधि है-शरीर की व्यथा, आधि है-मानसिक व्यथा और उपाधि है-भावनात्मक व्यथा। प्रश्न हैपहले किस पर चोट करें? सामान्यतः शरीर पर चोट करने की ही बात सामने आती है। किन्तु गहरे में उतर कर विचार करेंगे तो प्रतीत होगा कि सबसे पहले चोट करनी चाहिए उपाधि पर, भावनात्मक व्यथा पर । काम, क्रोध; अहं, ईर्ष्या, माया, लोभ-ये सब भावनात्मक दोष हैं। सबसे पहले इन पर चोट होनी चाहिए। इन पर चोट किए बिना भावनाओं को स्वस्थ नहीं रखा जा सकता। भावनाओं के स्वास्थ्य के साथ भोजन का प्रश्न जुड़ा हुआ है । भोजन कैसा हो, यह विवेक होना चाहिए।
आज के आहार का पेरामीटर है-स्वादिष्ट, दिखने में सुन्दर; चटपटा आदि। इसके आगे कोई सोचता ही नहीं। न भोजन का संयोजन करने वाला सोचता है, न भोजन करने वाला सोचता है और न खाने वाला सोचता है।
ध्यान साधक के लिए भोजन का विवेक बहुत आवश्यक है । प्रेक्षा-ध्यान का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है जीवन शैली को बदलना । जीवन शैली को बदलने का महत्त्वपूर्ण पहल है आहार को बदलना । आहार में परिवर्तन आना चाहिए। यह परिवर्तन भावनात्मक परिवर्तन का हेतु बनता है। भावनात्मक स्वास्थ्य अच्छा होगा तो हिंसा की वृत्तियां अपने आप क्षीण होंगी, अहिंसा का विकास होगा।
आहार और हिंसा, आहार और अहिंसा-इस पहलू पर और अधिक गंभीरता से विमर्श होना चाहिए ।
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