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अहिंसा और ध्यान
हिंसा का कारण नाड़ीतंत्रीय असंतुलन
तीसरा तत्व है - नाड़ी - तन्त्रीय असंतुलन । नाड़ीतन्त्रीय असंतुलन पैदा होते ही आदमी अकारण ही हिंसा पर उतारु हो जाता है । बहुत लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें मारने में मजा आने लगता है। मारने का कोई प्रयोजन नहीं है, न कोई अपराध, न कोई बैर-भाव, न कोई द्वेष और न कोई बदला लेने की भावना, कुछ भी नहीं, बस मारने में मजा आने लग गया । अभी-अभी कुछ व्यक्ति पकड़े गए थे। पुलिस ने पूछताछ की। उन्होंने यही कहा कि मारने में हमें बड़ा मजा आता है ।
अभी अभी पाकिस्तान में एक ग्रुप पकड़ा गया है हथौड़ा मार । वे हथोड़े से आदमी को मार डाल हैं । अनेक लोगों को, पचासों लोगों को उन्होंने मार डाला। पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार उनका कोई उद्देश्य नहीं था । बस, उन्हें मारने में मजा आता था । ऐसा क्यों होता है ? यह होता है - नाड़ीतन्त्रीय असंतुलन के कारण, रासायनिक असंतुलन के कारण | मारना उनके लिए आनन्द का और मनोरंजन का विषय बन जाता है ।
संतुलन का प्रयोग
नाड़ीतन्त्रीय असंतुलन को मिटाने का महत्त्वपूर्ण उपाय है समवृत्ति श्वास प्रेक्षा । दोनों नथुनों से श्वास, यानी बायें से शुरू करना और दाएं से निकालना और दाए से लेना और बाएं से निकालना । हमें नाड़ी तंत्र का संतुलन पैदा करना है। उसके दो हिस्से हैं-- एक बायां और एक दायां हठयोग में इसे कहा गया है इडा और पिंगला | बायां हिस्सा इडा है । मेडीकल साइंस की भाषा में कहें तो यह पिंगला सिपेथेटिक नर्वस सिस्टम है, अनुकपी नाड़ी तंत्र है और दायां हिस्सा, पेरासिपेथेटिक नर्वस सिस्टम है, परानुकंपी नाड़ी तंत्र है | हम समवृत्ति श्वास प्रेक्षा का प्रयोग करते हैं। दोनों नाड़ी तंत्रों में संतुलन पैदा हो जाता है । जब हम अन्तर्यात्रा का प्रयोग करते हैं तो केन्द्रीय नाड़ी - तन्त्र में संतुलन पैदा हो जाता है ।
नाड़ीतन्त्र के तीन भाग हैं - १. केन्द्रीय नाड़ीतन्त्र, २. अनुकंपी नाड़ीतन्त्र और ३. परानुकंपी नाड़ीतन्त्र । इन सबमें एक संतुलन स्थापित हो जाता है अन्तर् श्वास प्रेक्षा के प्रयोग से और समवृत्ति श्वासप्रेक्षा के प्रयोग से । यह संतुलन स्थापित होता है तो हिंसा की भावना अपने आप बन्द हो जाती है ।
घृणा
อา
से उपजती समस्या
हिसा का एक बहुत बड़ा माध्यम है निषेधात्मक दृष्टिकोण | दृष्टिकोण दो प्रकार का होता है— निषेधात्मक और विधायक । नेगेटिव और
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