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अहिंसा के अछूते पहलु.
अचानक इतना प्रबल विपाक में आ गया कि अहेतुक गुस्सा आ गया । कुछ लोग कहते हैं, पता नहीं मुझे कैसे बैठे-बैठे डर लगने लग गया। ये सब सहेतुक नहीं - ये सब भीतरी कारणों से होते हैं । जिन्हें विज्ञान की भाषा में रासायनिक परिवर्तन कह दें और कर्मशास्त्रीय भाषा में कर्म का विपाक या कर्म-संस्कार का जागरण कह दें । ये सब अपने अन्तर् से ही होते हैं, बाहर से कोई निमित्त नहीं होता, कोई परिस्थिति नहीं होती और वैसा कोई परिवेश नहीं होता । अपने भीतर से ही ये सारी घटनाएं घटती हैं । इन सब में परिवर्तन लाने का सबसे शक्तिशाली उपाय है अनुप्रेक्षा । अनुप्रेक्षाओं का प्रयोग आन्तरिक घटनाओं में भी परिवर्तन ला सकता है ।
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हिंसा का चौथा तत्त्व है - निषेधात्मक दृष्टिकोण | विधायक दृष्टि-कोण है उसके शमन का उपाय ।
अतिसक्रियता से हिंसा का बढ़ावा
हिंसा का पांचवा प्रबल तत्त्व है --- चंचलता, सक्रियता । वह तीन प्रकार की है - मन की चंचलता, वाणी की चंचलता और शरीर की चंचलता । चंचलता हिंसा को बढ़ावा देती है । सक्रियता हिंसा को बढ़ावा देती है । यह सही है कि चंचलता के बिना जीवन की यात्रा नहीं चलती । चंचलता जीने के लिए जरूरी है, किन्तु उसकी एक सीमा है कि आदमी को कितना चंचल होना चाहिए । ऐसा लगता है कि आज का युग सीमा को पार कर गया । वह अतिरिक्त चंचल बन गया । यह अधिक चंचलता हिंसा को प्रोत्साहन दे रही है । यदि कोई आदमी २४ घंटा प्रवृत्ति में रहे, सक्रिय रहे तो दो चार दिन में आधा पागल बन जाता है । और दस-बीस दिन रह जाए तो पागलखाने में जाने की तैयारी हो जाती है। प्रकृति का नियम है— चंचलता करो तो साथ में विश्राम भी करो । प्रवृत्ति करो तो नींद भी लो। नींद या विश्राम का विषय प्रवृत्ति के साथ जुड़ा हुआ है । अगर नींद नहीं होती तो दिल्ली जैसे शहर में बेचारी सड़क को भी कभी विश्राम नहीं मिलता। दो क्षण के लिए भी नहीं मिलता। हजारों-हजारों की भीड़ । अगर यह नींद नहीं होती तो विश्राम नहीं होता । ये बाजार भी कभी बंद नहीं होते । दिन और रात, २४ घंटा, आदमी को काम करना होता तो शायद यह पागलों का ही संसार होता । किन्तु एक नियम है चंचलता के साथ निवृत्ति का और विश्राम का आदमी ने इस सीमा का अतिक्रमण किया है, संतुलन को खोया है, वह अतिरिक्तः चंचल बन गया है । शरीर से भी बहुत ज्यादा चंचल है । कायोत्सर्ग कराया जाता है या कायिक अनुशासन की बात आती है तो पांच मिनिट के प्रयोग में भी बड़ी कठिनाई आ जाती है। बड़ा कठिन लगता है । यदि हम २४ घंटा में १८ घंटा या १६ घंटा शरीर को चंचल बनाएं रखें, तो ५-७ घंटा नींद में
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