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अहिंसा के अछूते पहलु
के संस्कार की कैसे बदला जा सकता है ? हिंसा की जड़ पर कैसे प्रहार किया जा सकता है और उसे कैसे बदला जा सकता है ? इस चर्चा में, इस प्रश्न के चिंतन में, सबसे ज्यादा और महत्त्वपूर्ण उपाय है ध्यान । ध्यान के द्वारा हिंसा की जड़ को काटा जा सकता है । धर्म में हिंसा की जड़ को काटने वाले जितने तत्त्व हैं उनमें शिरोमणि है ध्यान । श्वास भी है, स्वाध्याय भी है । अनेक उपाय हैं जो हिंसा की जड़ पर प्रहार करते हैं। पर उन सबसे ज्यादा प्रहारक क्षमता वाला साधन है ध्यान । एक उपमा के द्वारा इस बात को समझाया गया
-एक आदमी दो दिन की तपस्या करता है और एक आदमी लगभग ढाई मिनट ध्यान करता है। वह ढाई मिनट का ध्यान दो दिन की तपस्या को पीछे छोड़ देगा। कहां दो दिन भूखे रहना और कहां ढाई मिनट ध्यान करना ! यह शायद बहुत छोटी क्षमता बतलाई गई। ध्यान में इतनी अपार क्षमता है, हमारे चित्त की निर्मलता में इतनी ज्यादा क्षमता है कि शायद हजारों-हजारों वर्ष की तपस्या को एक घड़ी का ध्यान पीछे छोड़ देगा । हमें इसका मूल्यांकन करना है कि अहिंसा का विकास करने के लिए, अपने आपको जानने के लिए, प्राणीमात्र की समानता को समझने के लिए, प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा के सूत्र का, संवेदना के सूत्र का विकास करने के लिए जो शक्तिशाली साधन है वह है ध्यान । ध्यान के द्वारा हम हिंसा की जड़ को भी अच्छी तरह समझ सकतें हैं और अहिंसा की जड़ को भी समझ सकते हैं, हिंसा की जड़ को काट सकते हैं और अहिंसा की जड़ को और अधिक सिंचन दे सकते हैं । इस सारी स्थिति को समझने के बाद जो कुछ किया जा रहा है और जो प्रयत्न चल रहा है, उसका मूल्यांकन अपने आप हो जाएगा।
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